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________________ - - - १३० ] * श्री पार्श्वनाथ चरित - लक्षभ्याभिषेकमाप्तासौ मेवंग्रहरिविष्टरे ।क्षोरोदतोयकुम्भौधेः सर्वशक: सुवर्णज' ॥३०॥ पूर्णेन्दुना मनाहाती सशर्मामृतवृशिनी ।भ समाऽनित्तमोहन्ता स्वाङ्गभायोतिलावियत्। ३१। कुम्भाभ्यां सोऽत्र भोक्ता नवनिधीनां जिनेश्वरः । मत्स्ययुग्मेक्षणास स्थात् सुखी भोगनु देवजः ।।३।। सरसा लक्षण: पूर्णः सोऽष्टोत्तरसहस्रके: । हक्कंबल्यादिग्लानां रत्नाकरोऽत्र सोऽब्धिना ।३३।। सिंहासनेन साम्राज्यमवाप्स्यति जगस्त्रये स्वविमानेन ताशः स्वर्गादयतरिष्यति ॥३४।। नागेन्द्र भवनालोकात्सोऽवधिज्ञाननेत्रभाक् । दृग्ज्ञानादिगुणानां स पाकरो रत्नजतः ।। ३५।। कृत्स्नकर्मेन्धनानां स भस्मराशि करिष्यति । शुक्लध्यानाग्निना नूनं नि मज्वलनेक्षणात् ।।३६। सुरेभाकारमावाय भवत्यास्मप्रवेशनात् । त्वद्गर्भ पार्श्वतीर्थेशः स्वमाधास्यति निर्मल ।। ३७।। इति तेषां फलं श्रुत्वा दधे रोमाञ्चितं वषुः । हर्षाङ्क रेरिवाकीर्णं प्राप्तपुत्रेव सा तदा ।। ३८।। का घात करने वाला अनन्त बलशाली होगा। मालाओं के देखने से सम्यगधर्म और सम्यग्ज्ञान की प्राम्नाय को करने वाला तथा सुख की खान होगा ॥२६॥ लक्ष्मी के देखने से वह मेर के अग्रभाग में स्थित सिंहासन पर समस्त इन्द्रों द्वारा क्षीरसागर के जल से परि. पूर्ण सुवर्ण कलशों के समूह से अभिषेक को प्राप्त होगा ॥३०॥ पूर्णचन्द्रमा के देखने से वह मदमरूपी अमृत की दृष्टि से समस्त जीवों को प्राङ्गाविस करने वाला होगा । सूर्य के देखने से प्रज्ञानान्धकार को नष्ट करने वाला तथा अपने शरीर की कान्ति से प्राकाश को प्रकाशित करने वाला होगा ॥३१॥ कलशयुगल के देखने से वह नौ निधियों का भोक्ता तीर्थकर होगा और मीनयुगल के देखने से वह मनुष्य तथा देवों के भोगों से सुखी होगा ॥३२॥ सरोवर के देखने से वह एक हजार पाठ लक्षणों से पूर्ण होगा तथा समुद्र के देखने से सम्यग्दर्शन तथा केवलज्ञान प्रादि रत्नों का सागर होगा ॥३३॥ सिंहासन के देखने से बह तीनों जगत् के साम्राज्य को प्राप्त होगा और स्वर्ग का विमान देखने से वह तीर्थकर, स्वर्ग से अवतीर्ण होगा ॥३४॥ नागेन्द्र का भवन देखने से वह प्रवधिज्ञानरूपी नेत्र का धारक होगा मोर रस्नराशि के देखने से वह वर्शन ज्ञान प्रादि गुणों की खान होगा ॥३५॥ नि म अग्नि के देखने से वह निश्चित ही शुक्लध्यानरूपी अग्नि के द्वारा समस्त कर्मरूपी धन को भस्मराशि कर वेगा ॥३६॥ देव गज का प्राकार लेकर मुख में प्रवेश करने से सूचित होता है कि तुम्हारे निर्मल गर्भमें पार्श्वनाथ तीर्थकर अपने प्रापको धारण करेंगे ॥३७॥ ___ इस प्रकार स्वप्नों का फल सुनकर उसने रोमाञ्चित शरीर को धारण किया । उस समय वह ऐसी जान पड़ती पी मानों उसने पुत्र को प्राप्त कर ही लिया था और हर्ष के अंकुरों से उसका शरीर व्याप्त हो गया था ॥३॥ १. कुम्भाय : स्व.।
SR No.090346
Book TitleParshvanath Charitam
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorPannalal Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages328
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size9 MB
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