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________________ ० ] श्री अष्टमः सर्गः धर्मसाम्राज्यनायकम् । वृषोपदेशिनं पार्श्वनाथं तद्गतये स्तुवे १ सिद्धान्ततीर्थकर्ता मथान्यदा किलानन्दमहीट् शिरसि पुण्यतः । विलोक्य पलितं केशं काललब्ध्येति चिन्तयेत् ॥ २ ॥ अहो मे ग्रसितुं चागता जरा राक्षसी बलात् । पतितच्छधना नूनं यथा निन्द्या जगत्त्रये ॥३॥ तथा गमिष्यति प्राणान् हिंसितु मे यमोऽधमः । निर्दयो हि जराकान्तो विश्वलोकक्षयंकरः ॥४॥ प्रतो यावत्समायाति तावत्कार्यो महान् बुधैः । श्रप्रमत्त ेन यत्नस्तद्रोधको वा तदन्तकृत् अहो निवार्यतेऽप्यत्र यमः सिद्धर्न चापरैः | मतस्तत्पदसिद्ध्यर्थं क्रियते प्रोद्यमो महान् ||६|| बिना रस्नत्रयेणैव जातु सिद्धिपदं सताम् । जायते क्वापि काले न ह्यनन्तसुखपूरितम् ।।७।। राज्यभार)धिमग्नानां बहुचिन्तातिवतिनाम् । गृहिणां जातुभूयान्न सारं रत्नत्रयं दृढम् ॥८॥ ॥५॥ श्रष्टम सर्ग मैं प्रागम और धर्माम्नाय के कर्ता, धर्मरूपी साम्राज्य के नायक, तथा धर्म का उपबेश देने वाले श्री पार्श्वनाथ भगवान् को उनकी सिद्धावस्था प्राप्त करने के लिये नमस्कार करता हूँ ॥१॥ प्रथानन्तर एक समय प्रानन्दभूपति शिर पर सफेद बाल देख कर पुण्योदय से काललब्धि के अनुसार इस प्रकार विचार करने लगा ॥२॥ ग्रहो ! जान पड़ता है कि तीनों लोकों में निन्दनीय राक्षसी के समान यह वृद्धावस्था मुझे बलपूर्वक ग्रसने के लिये सफेद बाल के बहाने श्रा पहुँची है ||३|| जिस प्रकार यह वृद्धावस्था प्रायी है उसी प्रकार वृद्धाबस्था का पति, निर्दय और तीन लोक का क्षय करने वाला मोच यमराज भी मेरे प्राणों को नष्ट करने के लिये श्रा पहुंचेगा ||४|| अतएव जब तक वह भ्राता है तब तक विद्वानों को प्रसाद रहित होकर उसे रोकने वाला प्रथवा उसका प्रन्त करने वाला महान प्रयत्न कर लेना चाहिये ||५|| अहो ! इस जगत में वह यमराज, सिद्ध भगवान के द्वारा ही रोका जा सकता है अन्य के द्वारा नहीं, इसलिये उनके पद की प्राप्ति हेतु बहुत भारी उत्कृष्ट प्रयत्न करना चाहिये ||६|| अनन्त सुख से परिपूर्ण सिद्धि पर सत्पुरुषों को रत्नत्रय के बिना कहीं भी किसी भी काल में नहीं प्राप्त हो सकता है ||७|| जो राज्य के भार रूपी समुद्र में डूबे हुये हैं तथा अनेक चिन्ताओं को पीड़ा में वर्तमान हैं ऐसे गृहस्थों को श्रेष्ठ
SR No.090346
Book TitleParshvanath Charitam
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorPannalal Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages328
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size9 MB
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