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________________ पाश्र्वाभ्युदय नहीं पाया । अतः उन्हीं से पूछ बैठता है--मन को अपनी अन्तरात्मा में रखकर बाह ( व्यानी रूप में प्रसिद्ध) आप कहिए । क्या आप कर्मों के नष्ट हो जाने पर सिखावस्था को प्राप्त आत्मतव्य में मन को लगा रहे है अचदा ( आपके ) कण्ठ में आलिगन की इच्छा रखने वाली दूरवती प्रिया में मन लगा रहे है ? प्रायः शम्बरासुर यही सोचता है कि मुनि पापर्व सुन्दर-सुन्दर स्त्रियो पाने के लिए तपस्या कर रहे हैं। अतः वह बार बार उन्हें दिव्य स्त्रियों की प्राप्ति का प्रलोभन देता है। अप्सराओं के लोभ से सलवार के द्वारा मृत्यु प्राप्त करना भी वह एक बड़े सौभाग्य की बात मानता है। इस प्रकार बमवाद को सुनकर भी पार्षयोगी चुप ही रहते है, ध्यान से किचिम्मान भी युत नहीं होते हैं। उस समय उनकी धीरता देखकर यक्ष को भी आश्चर्य होता है लेकिन उसके अहं को यह स्वीकार करने में भी कठिनाई होती है और प्रत्युत्तर न देने के कारण पाश्च को स्त्रीम्मन्य मानता है : शक्षा को एकर जमा होता है कि नि: पार्श्व के कान उसके द्वारा कहे गए विशद अभिप्राय वाले समीचीन भाषण को नहीं मुनते हैं अत: वे निष्फुर वायुमों से दुषित है, स्त्रियों का गान इस प्रकार के कानों की अचूक औषधि है, अत: स्त्रियों का गान सुनने से प्रसन्न हुमा योगी अवश्य ही उसका प्रत्युत्तर देगा। इस प्रकार स्त्रीप्रलोभन के अनेक प्रसंगों से पामियूक्ष्य भरा पड़ा है, किन्तु अन्त में हमें ज्ञात होता है कि तीर्थकर पाखं को से प्रलोभन लुभा नहीं सके और प्रलोभन देने वाले बैरी को उनके समक्ष अफना पड़ा, उनकी शरण लेनी पड़ी। इससे यह अभिप्राय धोतित होता है १२. ध्यायन्ने मुनिपमभणीनिष्ठरालाप शौण्डो, भो भो भिमो भगतु स भवान् स्वान्तमन्तनिरुधन् । क्षीणक्ले सिषिषि मति किं निघत्तेङ्गितस्त्र, कम्ठाश्लेषप्रणयिनि जने किं पुनरसंस्थे । पाश्र्वा० ११२ ११. पाश्र्वाभ्युदम १॥२७, २९, ४॥२५, २४ १४. याचे देवं मसिहतिभिः प्राप्य मृत्यु निकारात् । मुक्तो वीरश्रिममनुभव स्वर्गलोकेसरोभिः ॥ पा० २६ १५. पाश्र्वा० १:३२, ४।१३ १६. मन्ये श्रोत्रं परुषपवनैटूषितं ते मदुक्तां, व्यक्ताकूतां समरविषयां सङ्कथा नो शृणोति । तत्पारुष्यप्रहरणमिद भेषजं विद्धि गेयं, ओष्यत्यस्मासरमवहितं सौम्य ! सीमन्तिनीनाम् ॥ पा. ४०१९ १७. पा . ४.
SR No.090345
Book TitleParshvabhyudayam
Original Sutra AuthorJinsenacharya
AuthorRameshchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages337
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size7 MB
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