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________________ चतुर्थ सर्ग ३१७ व्याख्या-जिस समय भगवान् को केवलज्ञान हुआ उस चैत्र मास के समय में शरत्काल का प्रादुर्भाव हुआ । भगवान् पाश्र्व विष्णु के समान श्यामवर्ण थे अतः यह विष्णु हो हैं, इस प्रकार लोगों को भ्रान्ति हुई। विष्णु चुंकि शरत्काल में शेष शय्या से उठते हैं अतः लोगों ने रागझा कि यह कार्तिक मास है । इस प्रकार चंद्रमास में भी दशरद्काल प्रकट हुआ । ज्योत्स्नाहासं दिशि दिशि शरत्तन्वती प्रादुरासीइत्यस्थाऽस्य प्रहसितुमियाज्ञानवृत्ति दुरन्ताम् । वैमल्यन स्फुटमिति दिशां रुन्धतीवोष्णकालं, मासानत्यानगमग जो लोग्ने भोलमिया ॥ ४५ ॥ ज्योत्स्नेति । शारत् शरत्कालः । तस्य कमटचरासुरस्य दुरन्ता टुष्टोऽन्तोषस्पास्ताम् दुःखफलाम् । अज्ञानवृत्तिम् अबोघवर्तनाम् । प्रहसितुमिव अपहमितुमित्र । विशिक्षिशि ककुभिककुभि । वांग्लायां दिः । सस्विपि दिशास्वित्यर्थः । ज्योत्स्नाहासं ज्योत्स्नं बहासस्तम् । तन्वती तनोतीति तन्त्रता शतृत्यः । 'मृदुक्' इति हो । लोचने नयने । मोलयित्वा निमील्य । अन्यान् कोषान् । चनुरो मासान् मासचतुष्टयम् । गमय यापय । इति पत्रम् । विशाम् आशानाम् । वैमत्येन नमत्येन । उज्यकाल निदाघम् । 'निदाघ उष्णोपयम उष्णत ऊष्मागमस्तपः' इत्यमरः । स्फुट व्यक्तम् । धतीव आवश्चतीव । प्रावुरासोत् प्रादु बंभूव । प्रकाशमाना बभूवेत्यर्थः । 'प्राकाश्ये प्रादूराविः स्यात्' इत्यमरः । षष्णाम् ऋतूनाम् त्रिकालत्वेनाभिननात् वार्षाकालासर्भूतकारदृतोः सकाशात् अन्यान् हिमशिविरात्मकस्य हेमन्तस्य चतुरो मातानतोत्य बसन्तग्रीष्मात्मको निदाघकालो भविष्यतीति भावः ।। ४७ ।। अन्वय-अस्य देतस्य दुरन्ततां अज्ञानवृत्ति प्रसितुमिव ज्योत्स्नाहासं दिशि दिशि तन्वती दिशा यमल्येन 'चतुरः ( त्वं ) मीयित्वा लोचने अन्यान् मालान् गमय' इति उष्णकाल स्फुट रुन्धती इव शरद् प्रादुरासोत् । ___ अर्थ--इस शम्बरासुर दैत्य की दुष्परिणाम युक्त ज्ञानशून्य क्रिया का मानों उपहास करने के लिए चांदनी रूप हास्य को प्रत्येक दिशा में फैलाती हुई दिशाओं को निर्मलता से चतुर ( तुम उष्णकाल ) आँखें मूद कर अन्य चार मासों को बिताओ।' इस प्रकार गर्मी के समय को मानों स्पष्ट रूप से रोकती हुई पारद् ऋतु आ गई । व्याख्या-चैत्रमास में सूर्य के उत्तरायण होने से उष्णकाल होने पर भी धरणेन्द्र के द्वारा निर्मित मण्डलाकार शरीर रूपी शय्या के ऊर्श्वभाग में उत्थित भगवान् को शरत् ने देखा तो उसने समझा कि यह विष्णु ही
SR No.090345
Book TitleParshvabhyudayam
Original Sutra AuthorJinsenacharya
AuthorRameshchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages337
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size7 MB
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