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________________ तृतीय सगं આર. समान आचरण करने वाली वह नये जल से युक्त आँसुओं को तुमसे भी अवश्य छुड़ाएगी अर्थात् उसे देखकर तुम भी नूतन जलरूप आँसू अवश्य गिराओगे क्योंकि दयालुचित्त वाले प्रत्येक जन का अन्तःकरण प्रायः आई ( सजल ) होता है अर्थात् करुणा सहित होने के कारण उसकी वैसी अवस्था को देखकर तुम्हारी आँखों से अश्रुधारा निकलेगी । मन्त्रीदृशीं दशां प्राप्तेति कथं खया निर्णीतमित्याशयेनाह - बन्धुप्रोति गुरुजन इवादृत्य कान्ताद्वितीये, जाने सल्यास्तव मयि मनः सम्भूतस्नेहमस्मात् । संवासाच्च व्यतिकरमिमं तत्त्वतो वेद्मि तस्माबित्यंभूतां प्रथम विरहे तामहं तर्कयामि || १४ || बन्धुप्रीतिमिति । गुरुजन इव । मात्र पित्रादाविव । कान्ताद्वितीये द्वितयकान्ताजने । अस्य स्त्रीजने इत्यर्थः । बन्धुत्रीति बान्धवानुरागम् । जाने जानामि । अस्मात् कारणात् । सेासाच्च संबसनं संत्रासस्तस्मादपि । इम व्यतिकरं व्यसनमिदम् । व्यतिकरः समाख्यातो व्यसनव्यतिषङ्गयोः' इति विश्वः । तत्त्वतः परमार्थतः वेधि जाने स्वात् कारणात् अहम् प्रथमंहेि आद्य विप्रलम्भे । प्रथमग्रहणं दुःखातिशय द्योतनार्थम् । तां त्वत्सखोम् । इत्यंभूत पूर्वोक्तरपन्नावस्थाम् । तर्कयामि निश्चिनोमि ॥५४॥ J i अन्ययान्ताद्वितीये मयि गुरुजने बन्धुप्रीति इव आदृत्य तक सख्या मनः सम्भृतस्नेहं जाने | अस्मात् संवासात् स इमं व्यतिकरं तत्त्वत: वेधि; तस्मात् प्रथमविरहे तो अहं इत्थम्भूतां तर्कयामि । अर्थ – कान्ता के साथ मुझ ज्येष्ठ जन के प्रति बन्धु की प्रीति की भाँति आदर करके तुम्हारी सखी (प्रेयसी ) का मन ( मेरे प्रति ) स्नेह से भरा हुआ है, ऐसा मैं जानता हूँ। इस कारण ( स्नेह की जानकारी के कारण ) तथा साथ में रहने से ( मैं ) इस विपत्ति को यथार्थ रूप से जानता हैं अतः अद्वितीय विरह में उस किन्नर कन्या को ऐसी (पूर्वोक्त ) अवस्था वाली मानता हूँ । ननु सुभगमानिनामेष स्वभावः यदात्मनि स्त्रीणामनुरागप्रकटनं तत्राह --- तन्मे सत्यं सकलमुदितं निश्चिनु स्वार्थसिद्ध्यै, स्निग्वां वृत्ति मनसि घटयन् येन साध्यानुविद्धम् । वाचाल मा न खलु सुभगं मन्यभावः करोति, प्रत्यक्षं ते निखिलमचिराद् भ्रातरुक्तं मया यत् ॥५५॥
SR No.090345
Book TitleParshvabhyudayam
Original Sutra AuthorJinsenacharya
AuthorRameshchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages337
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size7 MB
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