________________
तृतीय सर्ग
२६१ कामस्येति । मनिवेशे मम मदने । महिन्या भदभार्यया। विरक्षिततली संस्कृताधिष्ठानौ । प्रियायाः भार्यायाः। सेवभोयौ श्रयणीयौ। तो रक्ताशोककुरबको । कामस्य मन्मथस्म । एक मुख्यम् । "एके मुख्यान्यकेवलाः" इत्यमरः। प्रसवभवनम् उत्पत्तिसदनम् । 'प्रसत्रो जननानुज्ञापुत्रेषु फनामुष्पयोः" इति वैजयन्ती । विधि जानीहि । "विद ज्ञाने" लट् । एका नयोरन्यतरः अशोकः । मया सह तब सख्याः कान्तायाः । वामपादाभिलाषी वामपादमभिलपति इत्येवशीलः तथोन्ह . महइच्छहो : प नाम तो गाभिषामित्यर्थः । अन्य केमरः । बौहबछाना दौहुई वृक्षादीनां प्रसवकारणं संस्कारद्रवयं तरुगुल्भादीनामकाले । “पुष्पायुत्पादक द्रव्यं द्रौद स्पात्तनः क्रिया' इति शब्दार्णवात् । तस्य छाना व्याजेन । “कपटोऽस्त्री ज्याजवम्भोपधयश्छपकैतवे" इत्यमरः । अस्याः सख्याः । बदनमदिरा गण्डूषवृषरसम् । कामति वाञ्छति । मया महत्यत्रापि सम्बन्धनीयम् । अशोक बकुलयोः स्त्री पादताडनगण्यमदिरे दौहद इति प्रसिद्धम् ।।२९॥ ___ अन्वय-मन्निवेशे मया मह मद्गहिन्या विरचिततलौ, तव प्रियायाः सख्या सेवनीयों तो कामस्य एकं प्रसवभवनं विद्धि । [ तयोः ] एकः दौहृदच्छष्यना अम्याः वामपादाभिलाषीः, अन्यः [ अस्याः ] बदन मदिरा कामति । ___ अर्थ मेरे घर के उपबन में मेरे साथ मेरी स्त्री के द्वारा जिनके तलभाग ( वेदिका) की रचना की गई है और जो तुम्हारी प्रिया को सखी के द्वारा सेवनीय हैं ऐसे उन अशोक और बकूल के वक्षों को काम का एकमात्र उत्पत्तिस्थल जानो। उनमें से एक ( लाल अशोक ) दोहद ( वृक्ष आदि में पुष्पों की उत्पत्ति का कारण संस्कारक द्रव्य ) के बहाने इस किन्नर कन्या के बायें पैर के ताड़न का अभिलाषी है। दूसरा बकुल का वृक्ष इसके मुख की मदिरा को चाहता है।
व्याख्या-अशोक दो प्रकार का होता है-एक सफेद फूल वाला और दूसरा लाल फूल वाला। इनमें से सफेद फूल वाला बहुत सिद्धि करने वाला और लाल फूल वाला कामवर्द्धक होता है। निम्नलिखित श्लोक से इस बात की पुष्टि होती है
प्रसुनकरशोकस्त श्वेतो रक्त इति द्विधा ।
बहुसिद्धिकरः श्वेतो रक्तोऽत्र स्मरबर्द्धनः ।। असमय में वृक्षों के पुष्प विकास के विषय में काष्य जगत् में ऐसी प्रसिद्धि है
स्त्रीणां स्पर्शास्त्रियङगुर्विकसति, बकुलः सीधुगण्डूषसेकात्, पादाचातादशोकस्सिलकपूरचक्री बीरणालिमायाम् ।।