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________________ पाभ्युिदय कल्याण प्रदान करते हो । पघि भव्यजीवों के एकमात्र मित्र मापसे भषत इष्ट फल निश्चित रूप से प्राप्त करता ही है तो अच्छा है अर्थात् यदि आप मौन होकर भी कुछ देते हैं और भारत इष्ट फल प्राप्त करना ही है तो आपका मौन श्रेयस्कर है। फरुपयक्ष बया संसार के लिए शब्दों से ( उत्तरों से ) फलते हैं ? पायकों के अभीष्ट प्रयोजन का सम्पादन करना ही सज्जनों का उत्सर होता है।" हे प्राणिमात्र के प्रति दयाभाव रखने वाले ! विनम्र होकर मैं तुमसे आज पोनला सहित माधना करता है । सौहाद से अथवा पाप से भयभीत या दु:खाफुल होने से अथका मेरे प्रति अनुकम्पा भाव रखकर मशरण, निर्दय, अत्यन्त प्रौढ माया युषत, दुष्टाभिलाषी ( एयं ) पश्चाताप के कारण चरणों में गिरे हुए मुझे पापरहित करो।३२ हे मुनि मित्र पाई जिमेन्द्र ! मेरे भगवान के परण कमलों के प्रसाद से मूलता के कारण न्याय का उल्लङ्घन किए हुए मैंने जो वाणी से अनेक प्रकार की च की भक्ति से सरणी न झुके हुए मुमा बससुर की वह बेष्टा मिथ्या हो निन्दितास्मा मेरे पापकर्म मी मिथ्या हों । इस प्रकार मणभर भी मेरा आत्मस्वभावरूप शानसे घियोग न हो। उपयुक्त विवरण से मषित के सम्बन्ध में निम्नलिग्नित का स्पष्ट होती है(१) थोड़ी सी भी जिनषित महुत पुण्य उत्पन्न करती है। (२) मषित उत्तम सम्पदा को देने वाली और कल्याणकारी होती है । वह इस लोक और परलोक में सुखदायक होती है । ३१. श्रेयोऽस्मभ्यं समभिलषितं वारियाहो यथा स्वं, निःशब्दोऽपि प्रदिशसि बल याचितश्चातकेम्यः ।। प्रत्युत्तीर्णो यदि च भगवन्भब्यलोककमित्रात्, स्वतः श्रेयः फलमभिमत प्राप्नुयादेव भक्तः । प्रत्युवतैः किं फलति जगते कल्पवृक्षः फलानि ? प्रत्युवतं हि प्रणयिषु सतामीसितार्थक्रियेव ॥ पा० ४।६०-६१ ३२. अत्राशं मामपघृणमतिौलमायं दुरीह। पश्चात्तापाच्चरणपतितं सर्वसत्वानुकम्प । पापापेतं कुरु सकरुणं स्वाऽद्य साचे विनमः, सौहाठिा विधुर इति का मप्यमुक्रोशबुध्या २ पापर्वा० ४।६३ ३३. यत्तन्मौदयातबहुविलसितं न्यायमुल्लङ्घ्य वायां, तन्मे मिथ्या भवतु च मुने दुष्कृतं निन्दितस्वम् । भक्त्या पादौ जिन बिनमसः पार्श्व मे तत्प्रसादास्, मा भूदेवं क्षणमपि सखे विधुता विप्रयोगः ॥ पाश्वा० ॥१५
SR No.090345
Book TitleParshvabhyudayam
Original Sutra AuthorJinsenacharya
AuthorRameshchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages337
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size7 MB
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