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________________ टोडरमलजी की विचारधारा ने कितने समकालीन और परवर्ती विचारकों, कवियों, लेखकों और व्यक्तियों को प्रभावित किया इसका अध्ययन अभी बाकी है । तत्सम्बन्धी संकेत यत्र-तत्र प्रस्तुत ग्रन्थ में मिलते हैं। पं० टोडरमलजी के बाद अब तक इस वैचारिक परम्परा का इतिहास उनके व्यक्तित्व को और भी सबल रूप में हमारे सामने रख सकेगा । मैं डॉ० भारिल्लजी से अनुरोध करता है कि वे इस कार्य को अपने हाथ में लें और उसी शोध दृष्टि से उसे पूरा करें जैसा कि उन्होंने प्रस्तुत कार्य किया है। यह प्रत्यन्त हर्ष की बात है कि इसके लेखक प्राप्त नवीन सामग्री के आलोक में पुरानी मान्यताओं को परखते और निर्भीकतापूर्वक कहते हैं। उदाहरणार्थ, अब तक पंडित टोडरमलजी की मृत्यु २७ वर्ष की अवस्था में हुई मानी जाती थी (श्री टोडरमल जयन्ती स्मारिका, पृष्ठ १४-१५ ) । निश्चय ही २७ वर्ष की अवस्था में इतना बड़ा कार्य कर देने वाले टोडरमलजी और भी महान् थे। डॉ० भारिल्लजी ने अनेक प्रमारणों के आधार पर स्पष्ट किया है कि उनका देहान्त २७ वर्ष को नहीं प्रपितु ४७ वर्ष की अवस्था में हुआ था ( प्रस्तुत ग्रंथ, पृष्ठ ४४-५३) । ४७ वर्ष की अवस्था में इतना कार्य टोडरमलजी ने किया, इस स्थापना से उनकी महत्ता में कोई ग्रांच नहीं आती । प्रस्तुत ग्रन्थ जैनधर्म से सम्बन्धित सिद्धान्तों, व्याख्यानों, साहित्य और भाषा की दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण है । इस कार्य के लिए डॉ० भारिल्ल हिन्दी विद्वानों की ओर से बधाई के पात्र हैं । इसके प्रकाशक, पंडित टोडरमल स्मारक ट्रस्ट के संचालकगण और मूल प्रेरणा के स्रोत श्री कानजी स्वामी जिनका उल्लेख लेखक ने अपने निवेदन में किया है, भी बधाई के पात्र हैं । बी-१७४ ए, राजेन्द्र मार्ग बापूनगर, जयपुर-४ १ अगस्त १६७३ ( vi } - हीरालाल माहेश्वरी
SR No.090341
Book TitlePandita Todarmal Vyaktitva aur Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages395
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Story
File Size7 MB
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