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________________ कथनों में परस्पर विरोधाभास है। यदि इस विरोधाभास को प्रमुखता दी जाय, तो हो सकता है कि कालान्तर में विरोधी विचारधारात्रों के फलस्वरूप दोनों के प्राधार पर नए-नए उपरांप्रदाय स्थापित हो जाएँ। पं० टोडरमल जी की सलस्पशिनी दृष्टि ने इस बात को भलीभांति जान लिया था पोरोंने अपने मोक्षमार्ग प्रमाणात गंध में ऐसे विरोधाभासों में अनेक दृष्टियों से समन्वय स्थापित करने की चेष्टा की। उदाहरण के लिए, गोम्मटसार में जीव (आत्मा) की विभिन्न अवस्थाओं (गति, इन्द्रिय, काय, वेद प्रादि के भेद-प्रभेदों) का विस्तृत विवेचन है। पंडित टोडरमलजी का कथन है कि इन सव का यदि ज्ञान हो तो बहुत ही अच्छा है, किन्तु जानने की मुख्य वस्तु केवल शुद्ध आत्मा ही है। उनकी विचारधारा और समस्त तर्क इस अंतिम लक्ष्य - शुद्ध आत्मा को जानने और अनुभूत करने की मोर ही हैं। उनका मोक्षमार्ग प्रकाशक, जो दुर्भाग्य से अपूर्ण रह गया है, दि० जैनों की सैद्धान्तिक विचारधारा तथा गोम्मटसार और समयसार में समन्वय स्थापित करने वाला विलक्षण सैद्धान्तिक ग्रंथ है (द्रष्टव्य - मोक्षमार्ग प्रकाशक, अध्याय ७ तथा ) । दि० जैन मुमुक्षुत्रों और पाठकों की दृष्टि से एक प्रकार से मोक्षमार्ग प्रकाशक दोनों ही सिद्धान्त ग्रंथों-समयसार और गोम्मटमार के गुढ़ रहस्यों को समन्वयात्मक दृष्टि और तर्कसंगत प्रणाली से बोलचाल की भाषा में प्रस्तुत करने वाला आधुनिक काल का एक सिद्धान्त ग्रंथ ही है। मोक्षमार्ग प्रकाशक का प्रकाशन आज से ७६ वर्ष पूर्व हुआ था । तब से इसके अनेक संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं और अाज तो यह दि० जैन समाज में व्यापक रूप से मान्य और प्रचलित है । पं० टोडरमलजी की मेधा, विद्वत्ता और ज्ञान का इससे ऋिचित् अनुमान लगाया जा सकता है। दूसरा कार्य - भट्टारकवाद का विरोध जो टोडरमलजी ने किया, वह उनकी उपर्युक्त योजना की स्वाभाविक परिणति है । शुद्ध आत्मा की बात करने वाला व्यक्ति जड़ जगत से सम्बन्धित और इससे प्राप्त भोगोपभोगों की भर्त्सना करेगा ही। इस सम्बन्ध में इस परम्परा के विषय में दो शब्द कहने आवश्यक हैं। हिन्दी में सबसे पहले कवि
SR No.090341
Book TitlePandita Todarmal Vyaktitva aur Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages395
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Story
File Size7 MB
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