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________________ ३४६ पंडित टोडरमल : व्यक्तिरव और कर्तत्व पाव है ? अबार असा संयोग मिल्या है सो पूर्वं अनादि काल का नहीं मिल्या होगा। जै असा संजोग मिल्या होय ती फेरि संसार विष क्यां ने रहै ? जिनधर्म का प्रताप ऐसा नाहीं क सांची प्रतीति आयां फेरि संसार के दुख • पावै । तातें थे बुद्धिमान हो । जामैं अपना हित सधै सो करना। धर्म के अर्थी पुरुष ने तो थोड़ा सा ही उपदेश घणो होइ परणमै है । घणी कहबा करि कहा । और ई चीठी की नकल दश बीस और चीठी उतराय उहां के आसि पासि जहां जनी लोग बसते हाइ तहां भजनी । ए चीठी सर्व जैनी भायां न एकठे करि ताकै बीचि बांचणी । ताकं याका रहस्य सर्व कं समझाय देना। चीठी की पहोंचि सिताबी' पाछी लिखनीं। लिख्यां बिनां चीठी पहोंची वा न पहोंची की खबरि पड़े नाहीं। पाबा न पाबा की खबरि पड़े नाही । मिती माह बदि ६ संवत् १८२१ का। _.. .. . .. -- - ' तुरंत
SR No.090341
Book TitlePandita Todarmal Vyaktitva aur Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages395
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Story
File Size7 MB
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