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________________ इन्द्रध्वज विधान महोत्सव पत्रिका * वा श्राठ दस हजार जैनी महाजनां का घर पाईए है । अंसा जैनी लोगों का समूह और दिएँ नांही ! और यहां के देश व सर्वत्र मुख्यपर श्रावगी लोग बसे हैं । तातें एह नम्र वा देश बहोत निर्मल पवित्र है । तातें धर्मात्मा पुरुष बसने का स्थानक है। अबार तो ए साक्षात धर्मपुरी है । बहुरि देखो ए प्राणी कर्म कार्य के अथि तौ समुद्र पर्यंत जाय है वा विवाहादिक के कार्य विषै भी सौ पचास कोस जाय है, अर मनमान्या द्रव्यादिक खरचै है । ताका फल तो नर्के निगोदादि है । ता कार्य विषे तो या जीव के अंसी ग्रासलता पाईए है, सो ए तौ वासना सर्व जीवनि के बिना सिखाई हुई स्वयमेव नरिंग रही है; परंतु धर्म की लगनि कोई सत्पुरुषा के ही पाईए है । विषय - कार्य के पोषने वाले तो पेंड पेंड विषं देखिए है, परमार्थ कार्य के उपदेशक वा रोचक महादुर्लभ बिरले ठिकाणं कोई काल विषै पाईए है । तातें याको प्रापती महाभाग्य के उदै काललब्धि के अनुसारि होय है । यह मनुष्य पर्याय जावक खिनभंगर' है, ता विषे भी अवार के काल में जावक अल्प बीजुरी का चमत्कारवत थिति है । ताकै विषै नफा टोटा बहुत है। एकां तरफ नैं तो विषय कषाय का फल नरकादिक अनंत संसार का दुख है। एकां तरफ ने सुभ सुद्ध धर्म का फल स्वर्ग मोक्ष है । थोड़ा सा परणांमां का विशेष करि कार्य विदे एता तफावत' पर है । सर्व बात विषे एह न्याय है। बीज ती सर्व का तुछ ही होइ है पर फल वाका अपरंपार लागं है, तातें ज्ञानी विचक्षण पुरषन के एक धर्म ही उपादेय है । अनंतानंत सागर पर्यंत काल एकेन्द्री विषै वितीत करें है तब एक पर्याय अस कापावे है। सा स पर्याय का पायवा दुर्लभ है तौ मनुक्ष पर्याय पायबा की कहा बाल । ता विषै भी उच्च कुल, पूरी ग्रायु, इन्द्री प्रबल, निरोग शरीर, आजीवका की थिरता, सुभ क्षेत्र, सुभ काल, जिनधर्म का अनुराग, ज्ञान का विशेष क्षयोपशम, परणांमां की विशुद्धता, ए अनुक्रम करि दुर्लभ सूं दुर्लभ ए जीव पाव है । कैसे दुर्लभ २ अंतर, छोटा क्षणभंगुर,
SR No.090341
Book TitlePandita Todarmal Vyaktitva aur Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages395
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Story
File Size7 MB
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