________________
इन्द्रध्वज विधान महोत्सव पत्रिका
[ साधर्मी भाई क० रायमल ] आगें माह सुदि १० संवत् १८२१ अठारा से इकदीस के सालि इन्द्रध्वज पूजा का स्थापन हवा । सो देस-देस के साधर्मी बुलांवनें कौं चीठी लिखी ताकी नकल इहां लिखिए है। दिल्ली १, आगरै १, भिड १, कोरडा जिहांनाबाद १, सिरोज १, वासोदो १, ईदौर १, औरगांवाद १, उदपुर १, नागोर १, बीकानेरि १, जैसलमेरि १, मुलतान १ पर्यंत चीठी असें लिखी सो लिखिए है :
स्वस्ति दिल्ली आगरा आदि नन के समस्त जैनी भायां योग्य सवाई जयपुर थी राइमल्ल केनि श्री शब्द बांचनां । इहाँ प्रानन्द वर्ते है । थाँ के आनंद की वृद्धि होऊ । थे धर्म के बड़े रोचक हो ।
अप्रचि इहाँ सवाई जयपुर नग्र विष इन्द्रध्वज पूजा सहर के बारे अधकोस परै मोतीडूंगरी निकटि ठाहरी है। पूजा की रचना का प्रारंभ तो पोस बदि १ सं ही होने लगा है। चीसठि गज का चौड़ा इतनां ही लांबा एक च्यौतरा बण्या है। ता उपरि तेरह द्वीप की रचना बरणी है । ता विष यथार्थ च्यारि सै अठावन चैत्यालय, अढाई द्वीप के पांच मेरु, नंदीश्वर द्वीप के बावन पर्वत ता उपरि जिनमंदिर बरणें हैं। और अढाई द्वीप विष क्षेत्र कुलाचल नदी पर्वत वन समुद्र ताकी रचना बरणी है । कठे ही कल्पवृक्षों का वन ता विष कठे ही चैत्य वृक्ष, कठे ही सामान्य वृक्षां का बन, कठे ही पुष्प बाड़ी, कठे ही सरोवरी, कठे ही कुंड, कठे ही द्रह, कठे ही द्रह माहि सूं निकसि समुद्र में प्रवेश करती नदी, ताकी रचना बगी है। कठे ही महलां की पंक्ति, कटै ही ध्वजा के समूह, कठे ही छोटी-छोटी ध्वजा के समूह का निर्मापण हूवा है।