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________________ ३३२ . पंजित टोडरमल : व्यक्तित्व प्रौर कतत्व संता, जहां पौन का संचार नाही असी अवस्था नै धरयां नौ मास नर्क साद्रस्य दुख करि पूर्ण कीया। पीछे गर्भ बाह्य निकस्या बाल अवस्था के दुख करि फेरि तीन वर्ष पूर्ण कीये । असा तौ तीन बर्ष नौ मास का भावार्थ जाननां । पर या अवस्था के जो पूर्व अवस्था भई ताका जानपनां तो हमारे नाहीं। तहां पीछला जानपनां की यादि है सोई कहिए है। तेरा चौदा वर्ष की अवस्था हुएं स्वयमेव विशेष वोध भया । ता करि पैसा विचार होने लागा जीव का स्वभाव तौ अनादिनिधन अविनासी है । धर्म के प्रभाव करि सुखी होय है। पाप के निमत्त करि दुखी होय है। ताते धर्म ही का साधन कर धनां पाप का साधन न करनां 1 परन्तु सक्ति हीन करि वा जथार्थ ज्ञान का प्रभाव करि उत्कृष्ट धर्म का उपाय बनें नाहीं । सदेव परमां की वृत्ति असे रहै, धर्म भी प्रिय लागे अर ई पर्याय संबंधी कार्य भी प्रिय लागे । बहुरि सहज ही दयालसुभाब, उदारचित्त, ज्ञान बैराज्ञ की चाहि, सतसंगति का हेरू, मुरगीजन पुरषां का चाइक होत संता इस पर्याय रूप प्रवर्तं । पर मन विष असा संदेह उपजै - ए सासता एता मनुष्य ऊपज है, एता तिर्यंच ऊपज है, एती बनास्पती ऊपज है, एता नाज सप्त धातु रूई षट्रस मेवा आदि नाना प्रकार की वस्तु उपजै है, सो कहाँ सूं आवै है पर बिनसि कहां जाय है । इसका कर्ता परमेश्वर बतावै है सो तो परमेश्वर कर्ता दीस नांहीं। ए तो आपै आप उपज है, आपै पाप विनसै है, ताका स्वरूप कौंन कू बूझिए। बहुरि ऊपर कहा कहा रचना है। अधो दिशा ने कहा कहा रचना है, पूर्व आदि च्यारां दिशां ने कहा कहा रचना है, ताका जानपना कैसे होइ । याका जानपनां कोई के है का नाही, असा संदेह कैसे मिटै । बहुरि कुटुंबादि बड़े पुरुष ताने याका स्वरूप कदे पूछे तब कोई तौ कहै परमेश्वर कर्ता है, कोई कहै कर्म कर्ता है, कई कहै हम तो क्यूं'
SR No.090341
Book TitlePandita Todarmal Vyaktitva aur Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages395
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Story
File Size7 MB
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