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________________ उपसंहार: उपलब्धियां और मूल्यांकन ३१६ ५ पड़ी बोली और इनके प्राचीन गद्यों के नमूने मिलते हैं। ब्रजभाषा और खड़ी बोली के सम्बन्ध में कुछ बातें विचारणीय हैं। प्राचार्य भिखारीदास का यह कथन : - "ब्रजभाषा सीखिबे की त्रजवास ही न अनुमानौ । ऐसे ऐसे कविन की, वानी हू लें जानिये ।। " ब्रजभाषा के प्रचार और प्रसार के संदर्भ में यह अत्यन्त महत्त्वपूर्ण और सटीक टिप्पणी है। खड़ी बोली के लिए भी प्रकारान्तर से कुछ ऐसी ही बात कही जा सकती है, किन्तु नितान्त भिन्न संदर्भ में । मुसलमानों के इस देश में निरन्तर प्राते रहने और अनेक के यहाँ स्थायी रूप से बस जाने के कारण यहाँ के लोगों और विदेशी आगन्तुकों की भाषाओं का पारस्परिक आदान-प्रदान हुआ । श्रनेक सांस्कृतिक, सामाजिक, राजनैतिक और भौगोलिक कारणों से दोनों के सम्मिलन से खड़ी बोली को रूप-रेखा मिली । जहाँ-जहाँ मुसलमानों का विशेष प्राबल्य रहा, वहाँ वहाँ यहाँ के क्षेत्र विशेष की भाषा के संपर्क और समन्वय से खड़ी बोली अपना रूप सुधारती गई । ऊपर लिखे कारणों से उन्नीसवीं शताब्दी में उसमें एकरूपता यानी आरम्भ हुई, जिसकी पूर्ण परिणति और निखार आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी के हाथों हुआ। अनेक ऐसे कवि और लेखक हुए, जिन्होंने यहाँ के क्षेत्र विशेष की भाषा के साथ खड़ी बोली का; तथा क्षेत्र विशेष की भाषा के साथ ब्रजभाषा का प्रयोग किया है । ऐसे भी लेखक हुए जिन्होंने क्षेत्रीय भाषाओं की विशेषताओं के साथ उपर्युक्त प्रकार की खड़ी बोली और ब्रजभाषा- दोनों का मिश्रण , खड़ी बोली के लिए द्रष्टव्य : (क) कुतुब- शतक और उसकी हिन्दुई सम्पादक डॉ० माताप्रसाद गुप्त (ख) पंजाब प्रान्तीय हिन्दी साहित्य का इतिहास : पं० चन्द्रकान्त वाली (ग) खड़ी बोली हिन्दी साहित्य का इतिहास : वृजरत्नदास ' ब्रजभाषा के लिए द्रष्टव्य : (क) सूर पूर्व ब्रजभाषा और उसका साहित्य : शिवप्रसादसिंह (ख) अजभाषा का व्याकरण : डॉ० भीरेन्द्र वर्मा
SR No.090341
Book TitlePandita Todarmal Vyaktitva aur Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages395
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Story
File Size7 MB
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