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________________ भाषा प्रकार सम्प्रदान कारक में 'के अथि' और 'ताई' नये प्रयोग है। सम्बन्ध कारक में प्रजभाषा की अपेक्षा व्यापक प्रयोग हुए हैं, खड़ी बोली का 'का' पाया जाता है जो कि मज में नहीं है । अधिकरण में ब्रजभाषा का 'लौं' और 'प' न होकर 'विष' और 'इ' पाया जाता है । प्रायः शेष कारक चिन्ह ब्रजभाषा से मिलते हैं। पंडितजी की भाषा में खड़ी बोली का भी प्रभाव देखने में प्राता है। सामान्यभूत में 'चल्र.:, मासा, कहा' हा गाते हैं से खदी दोनी के निकट हैं। कुछ प्रयोग तो सीधे खड़ी बोली के भी हैं- जैसे 'स्पर्शा। शेष प्रायः सभी रूप अजभाषा से मिलते-जुलते हैं। खड़ी बोली से मिलते-जुलते कुछ अंश नीचे दिए जा रहे हैं : "बहुरि मैं नृत्य देख्या, राग सुन्या, फूल सूंघ्या, पदार्थ स्पर्शा, स्वाद जान्या तथा मौकों यह जानना, इस प्रकार ज्ञेयमिश्रित ज्ञान का अनुभव है, ताकरि विषयनि करि ही प्रधानता भास है।" "जैसे बाउलाकौं काहू नै वस्त्र पहराया, वह बाउला तिस वस्त्रकों अपना अंग जानि आपत पर शरीरको एक मानै । वह वस्त्र पहरावने वाले के अधीन है, सो वह कबहू फार, कबहू जोरै, कबहू खोस, कबहू नवा पहराव इत्यादि चरित्र करै । वह बाउला तिसकों अपने प्राधीन माने, वाकी पराधीन क्रिया होय तातें महा खेदखिन्न होय।" उत्तम पुरुष एकवचन क्रिया के रूप निम्नलिखितानुसार पाए जाते हैं, जो खड़ी बोली के प्रति निकट हैं :____ "मैं सर्व को स्पशी, सर्व कौं स्वादौं, सर्व को सूंघों, सर्व को देखों, सर्व कौं सुनौं, सर्व कौं जानौं, सो इच्छा तो इतनी है और शक्ति इतनी ही है जो इन्द्रियनि के सम्मुख भया वर्तमान स्पर्श रस गंध वर्ण शबद तिनि विष काहू को किंचिन्मात्र ग्रहै ।" १ मो० मा० प्र०, ६७ २ वही, ७३ ३ वही, ६८
SR No.090341
Book TitlePandita Todarmal Vyaktitva aur Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages395
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Story
File Size7 MB
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