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भाषा
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(२२) सेय सेइए हित का कर्ता जानि सेइए । (२३) पहिराव पहिरावै कबहूँ नवा पहिरावं। (२४) बोल बोले मरमच्छेद गाली प्रदानादि रूप
वचन बोले। (२५) धुनना धुन है सर्व कर्म धुने हैं। (२६) मिटना मिट तो छद्मस्थानि के मिटे,
ग्रंथ करन को पंथ । (२७) लगना लग्यो है लग्यो है अनादि ते कलंक कर्म
मल को। (२८) सूंघ सूचूं सर्व की सूचूं। (२६) पहिचान पहिचानिए भया यहु ग्रंथ सोई कर्म
पहिचानिए। (३) द हिगावै कोई भोला दो सौ ही मोती
नाम करि ठिगाये। प्रेरणार्थक क्रियाओं के निम्नलिखित रूप पाए जाते हैं :(१) परिणमना परिणमावै पुण्य प्रकृति रूप परिणमा । (२) ठहराना ठहराव वह तपश्चरण को बृथा ठहरावे । (३) अनाना अनाइये याको प्रतीति अनाइये है। (४) अनावना अनाव तिस उपाय की ताको प्रतीति
अनावै । (५) कराना १. करावं है। संयोग करावं है। २. करावी
जैसे बने तैसे शास्त्राभ्यास
करावौ। (६) लिखाना लिखावी लिखो लिखायौ वांची पढ़ी। (७) पढ़ाना पढ़ावं अन्य धर्मबुद्धीनिकौं पढ़ावै। (८) द्याव द्याक्ने दुख धावने की जो इच्छा है सो
कषायमय है।
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