________________
भाषा
२८
करण
करण कारक में 'तै, करि, स्यौं, सेती' प्रत्यय प्रयोग में लाये गए हैं :ते - (१) मुनि धर्म साधन तै च्यारि धाति कर्मनि का नाश भये ।
(२) ते तो मोते बने नाहीं । (३) नमो ताहि जात भये अरहंतादि महान । (४) संस्कार के बल से तिनका साधन रहे है। (५) मुख में ग्रास धऱ्या ताकों पवन तें निगलिए है ।
(६) या कारण त यहाँ प्रथम मंगल किया । करि - (१) जा करि सुख उपजै वा दुःख विनशै तिस कार्य का
नाम प्रयोजन है । (२) तिनका संक्लेश परिणाम करि तो तीव्र बंध हो हैं । (३) बन्धन करि आत्मा दुखी होय रह्या है । (४) जीभ करि चाख्या, नासिका करि सूंघ्या। (५) अरहतादिकनि करि हो है ।
(६) ता फरि जीवनि का कल्याण हो है । स्यौं - (१) सुख स्यौं ग्रन्थ की समाप्ति होइ।
(२) राजा स्यौं मिलिए।
(३) शरीर स्यौँ सम्बन्ध न छूटे । सेती - जो उनको मानै पूर्जे तिस सेती कौतूहल किया कर। सम्प्रदान
सम्प्रदान कारक में 'के अथि' का बहुत अधिक प्रयोग हुआ है। 'को, कों, ताई के प्रयोग भी यत्र-तत्र हुए हैं :के अथि-(१) नमस्कार प्ररहंतनि के प्रथि । (२) श्रीगुरु तो परिणाम सुधारने के प्रयि बाह्य क्रियानि को
उपदेश हैं। (३) या प्रकार याके सम्यग्दर्शन के अधि साधन करते भी
सम्यग्दर्शन न हो है।
m