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________________ भाषा २५५ (१३) प्रतीति । बहुरि प्रतीति अनावन के अर्थि अनेक युक्ति करि अनावनै । उपदेश दीजिए। और प्रतीति ! वस्तु की प्रतीति कराबने कौं उपदेश दीजिए है। कगवन वचन आलोच्य साहित्य की भाषा में एकवचन और बहुवचन का प्रयोग हुअा है । एकत्रचन से ब्रहृवचन बनाने के लिए 'नि, न, ओं' का प्रयोग किया गया है। एकवचन से बहुवचन बनाने में अकागन्त, प्राकारान्त, इकरान्त, ईकारान्त, उकारान्त और ऊकारान्त प्रादि शब्दों में कोई विशेष नियम न अपना कर सर्वत्र उक्त प्रत्यय लगाकर ही एकवचन से बहुवचन बना लिये गए हैं । ध्यान देने योग्य बात यह है कि जब वे ह्रस्व 'इ, उ' के बाद नि' लगा कर बह वचन बनाते हैं तब ह्रस्व 'इ, उ' के स्थान पर क्रमश: दीर्घ 'ई, ऊ' कर देते हैं। नीचे कुछ उदाहरण दिए जा रहे हैं :नि.. - तहाँ प्रथम प्ररहंतनि का स्वरूप विचारिए हैं । प्रा - लोक विर्षे तो राजादिक की कयानि विमें पाप का पोषण हो है। इ - ऐसें तुच्छ बुद्धीनि के समझाबन कौं बहु अनुयोग है । ई-- अर पापीनि को निन्दा जा विर्षे होय.....। उ - इन तीन प्रायूनि का अल्प कषाय से बहुत पर बहुत कषाय ते अल्पस्थिति बंध जानना। न - तातै श्रोतान का विरुद्ध श्रद्धान करने तै बुरा होय । ओं - जातें जो ऐसा न होइ तो श्रोताओं का सन्देह दूर न होई ।
SR No.090341
Book TitlePandita Todarmal Vyaktitva aur Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages395
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Story
File Size7 MB
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