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________________ २८० पंडित टोडरमल : व्यक्तित्व और कतत्व यथावत् - ताको यथावत् निश्चय जानि अवधारै हैं । यथायोग्य – (१) तिनका यथायोग्य विनय करूँ हूँ। (२) ते भी यथायोग्य सम्यग्ज्ञान के धारक हैं । यथासंभव - ऐसे ही यथासंभव सीखना, सिखावना प्रादि......। नाना प्रकार - जे नाना प्रकार दुःख तिन करि पीड़ित हो रहे हैं । नाना विध - (१) नाना विघ भाषारूप होइ विसतरे हैं। (२) सो नाना विध प्रेरक भयो । तथा विध – तथा विध कर्म को क्षयोपशम जानिए । बारंबार - अपने अंतरंग विर्षे बारंबार विचार है । जात - ऐसे इतरेतराश्रय दोष नाहीं जातं अनादि का स्वयंसिद्ध द्रव्यकर्म संबंध है। ताते - तातै भिन्न न देखे कोय, बिनु विवेक जग अंधा होय । सहज - सहज ही वीतराग विशेषज्ञान प्रगट हो है। फुनि - कनकनंदि फुनि माधवचन्द, प्रमुख भए मुनि बहू गुन कंद । कि - बहुरि कोऊ कहे कि अनुराग है तो अपनी बुद्धि अनुसार ग्रंथाभ्यास करौं । ही- तातें व्रत पालने विर्षे ज्ञानाभ्यास ही प्रधान है । प्रगट – वीतराग विशेषज्ञान प्रगट हौ है । बुगपत् - सर्व को युगपत् जानि सकते नाहीं । अन्यथा -- अर्थ अन्यथा ही भासै । किन है - किन ने अन्य ग्रंथ बनाए । भिन्न-भिन्न - भिन्न-भिन्न भाषा टीका कीनी अर्थ गायकैं। सर्वथा - तातें सुखी सर्वथा होई।
SR No.090341
Book TitlePandita Todarmal Vyaktitva aur Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages395
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Story
File Size7 MB
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