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________________ भाषा २७६ बहुरि - बहुरि बक्ता कैसा चाहिए ? व - वा वचन सुनना वा निकटवर्ती होना व तिनके अनुसार प्रवर्त्तना। वा- इहाँ जो मैं यहु ग्रंथ बनाऊँ हूँ सो कषायनितं अपना मान बधावनेकों या लोभ साधनेकौं या यश होनेकौं श्रा अपनी पद्धति राखनेकौं नाहीं बनाऊँ हूँ। अथवा -- अथवा परस्पर अनेक प्रश्नोत्तर करि वस्तु का निर्णय कर है। पर – पर यदि वक्ता लोभी होय तो वक्ता आप ही हीन हो जाय । परन्तु - परन्तु तिस राग भाव को हेय जान कर दूर किया चाहे है। केवल - केवल निर्जरा ही हो है । बिना – ताके बिना कुमाए भी धन होता देखिए । बिनु - (१) तातै बुद्धिमान बिनु जाने नाहि सार है । (२) बल बिनु नाहि पदनिकों धरै। यद्यपि। यद्यपि यह पुद्गल को खंध, तथापि है तथापि श्रुत ज्ञाम निबंध । तो- दुर्जन तो हास्य करेंगे। तौ-ऐ ती क्रिया सर्व मुननि के साधारण हैं। भी - (१) ते भी यथायोग्य सम्यग्ज्ञान के धारक हैं। (२) बहुरि युक्तिसे भी ऐसे ही संभव है । तौऊ - तौऊ उपकार कर है। यदि - पर यदि वक्ता लोभी होय तो वक्ता आप ही हीन हो जाय।
SR No.090341
Book TitlePandita Todarmal Vyaktitva aur Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages395
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Story
File Size7 MB
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