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________________ २७० . . पंडित टोडरमल : व्यक्तित्व और फर्तृत्व पना - (१) देवाधिदेवपना को प्राप्त भए हैं । (२) कुल अपेक्षा महंतपना नाही संभव है। (३) घातिकर्म का होनपना के होने तैं सहज ही वीतराग विशेषज्ञान प्रगट हो है। पनों - (१) जे गृहस्थपनों त्यागि मुनि धर्म अंगीकार करि निज स्वभाब साधन च्यारि घातिया कर्मनिवौं खिपाय अनंतचतुष्यरूप विराजमान भाए । (२) तहाँ इष्ट-अनिष्टपनों न मानिए है । पने - (१) बहुरि जे मुख्यपने तो निर्विकल्प स्वरूपाचरण विर्षे ही मग्न हैं। (२) राजा और रंक मनुष्यपने की अपेक्षा समान हैं । 'ता - (१) उन्मत्तता उपजाबने की शक्ति है । (२) ज्ञान दर्शन की व्यक्तता रहे है। (३) मोए लोकविर्षे पंडितता प्रगट करने के कारण हैं। (४) कुल की उच्चता तो धर्म साधनते है। त्व - प्राणाधिकारविर्षे प्रागनि का लक्षण पर भेद अर कारण अर स्वामित्व का कथन है । त्य - अर जो पांडित्य प्रगट करनेकौं लागै तो कपायभाव ते उल्टा बुरा हो है । आई- (१) जुवाई कौं नाहीं विचार । (२) अपनी पण्डिताई जनावनेकौं । त्व और पना] (१) याही वरि जीव का जीवत्वपना निश्चय कीजिए हैं। ___ का एक (२) अनुभाग शक्ति के प्रभाव होनेः कर्मस्थपना का साथ प्रयोग अभाव हो है । कहीं-कहीं पर 'ग्रारोग्यवानपनों, बलवानपनों' जैसे प्रयोग भी मिलते हैं। जैसे - बहुरि साता के उदय करि शरीर विर्षे आरोग्यघानपनों बलवानपनों इत्यादि हो है ।
SR No.090341
Book TitlePandita Todarmal Vyaktitva aur Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages395
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Story
File Size7 MB
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