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________________ २६० पंडित टोडरमल : व्यक्तित्व और कर्त्तृत्व (१३) यज्ञार्थं पशवः सृष्टाः (१४) पुत्रस्य गतिर्नास्ति (१५) चारितं खलु धम्मो (१६) हस्तामलकवत् पंडित टोडरमल ने गद्य को अपने विचारों के प्रतिपादन का माध्यम उस समय चुना जब कि प्रमुख रूप से सब लोग पद्य में ही लिखते थे । ब्रज गद्य का रूप भी अपनी प्रारम्भिक अवस्था में था । यद्यपि छुटपुट रूप में टोडरमलजी से कुछ समय पूर्व के पिंगल गद्य के रूप मिल जाते हैं किन्तु उनसे यह नहीं कहा जा सकता कि उस समय गद्य विचारों के वाहन का मुख्य साधन बन चुका था। हिन्दी साहित्य के इतिहासकारों ने गद्य की समस्त विधानों से युक्त प्राचीन से प्राचीन गद्य ग्रंथ सन् १८०० ई० के बाद का ही होना उल्लिखित किया है', जबकि पंडित टोडरमल का खाकाल सन् १७२४ से १७६७ ई० (विक्रम संवत् १८११ - १८२४ ) है । यतः हिन्दी गद्य के निर्माण एवं रूपस्थिरीकरण में पंडित टोडरमल का प्रमुख योगदान रहा है। तत्कालीन गद्य की तुलना में पंडितजी का गद्य कहीं अधिक परिमार्जित, सशक्त, प्रवाहपूर्ण एवं सुव्यवस्थित है । 4 निष्कर्ष रूप में यह कहा जा सकता है कि उनकी गद्य शैली प्रश्नोत्तर शैली है, जिसमें दृष्टान्तों का प्रयोग मरिण-कांचन योग की शोभा बढ़ाने वाला है । आध्यात्मिक विषय के प्रतिपादक होने पर भी उनको गद्य शैली में उनके व्यक्तित्व की झलक है । उनकी शैली ऐसी प्रतिपादन शैली है, जिसमें वह प्रत्यक्ष रूप में उपदेशक बन कर नहीं आते। उनकी शैली में शास्त्रीय चिंतन और लोक व्यवहारज्ञान एवं अनुभूति और चिंतन का सुन्दर सामंजस्य है । हिन्दी साहित्य, ३६४-३६५
SR No.090341
Book TitlePandita Todarmal Vyaktitva aur Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages395
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Story
File Size7 MB
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