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________________ २४ गय शैली तहाँ प्रवर्त्तनेते कहा भला होयगा, नरकादिक पावेगा । तातें ऐसे करमा तो निर्विचारपना है।" (४) "जो ऐसा श्रद्वान है, तो सर्वत्र कोई ही कार्य का उद्यम मति करै। तू खान-पान व्यापारादिक का तो उद्यम कर, अर यहाँ होनहार बतावै । सो जानिए है, तेरा अनुराग यहाँ नाहीं। मानादिक करि ऐसी झूठी बातें बना है।" (५) "बहुरि जैसे बड़े दरिद्रीको अवलोकनमात्र चिन्तामणि को प्राप्ति होय अर वह न अवलोक, बहुरि जैसे कोढ़ीकू अमृत पान करावे अर वह न करे, तैसे संसारपीडित जीवकौं सुगम मोक्षमार्ग के उपदेश का निमित्त बने पर वह अभ्यास न करे तो बाके अभाग्य की महिमा हमत तो होई सके नाहीं । वाँका होनहारहीको विचार अपने समता पावै ।" (६) "सो हे भव्य हो ! किचिन्मात्र लोभत वा भयतें कुदेवादिक का सेवन करि जातें अनन्त काल पर्यंत महादुःख सहना होय ऐसा मिथ्यात्वभाव करना योग्य नाहीं। जिनधर्म विष यह तो आम्नाय है, पहले बड़ा पाप छुड़ाय पीछे छोटा पाप छुड़ाया। सो इस मिथ्यात्वको सप्तव्यसनादिकतें भी बड़ा पाप जानि पहले छुड़ाया है । साते जो पापके फल' से डर हैं, अपने प्रात्मा को दुःखसमुद्र में न डुबाया चाहें हैं, ते जीव इस मिथ्यात्व कौं अवश्य छोड़ो। निदा प्रशंसादिक के विचार तें शिथिल होना योग्य नाहीं ।" (७) "हे स्थुलबुद्धि ! से प्रतादिक शुभ भाव कहै ते करने योग्य ही हैं, परन्तु ते सर्व सम्यक्त्व बिना ऐसे हैं जैसे अंक बिना बिन्दी। अर जीवादि का स्वरूप जानें बिना सम्यक्त्व का होना ऐसा है, जैसा ५ मो० मा० प्र०, ३७३ २ बही, २६० 3 बही, २९-३० वही, २८१-२८२
SR No.090341
Book TitlePandita Todarmal Vyaktitva aur Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages395
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Story
File Size7 MB
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