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पंडित टोडरमल : व्यक्तित्व और कर्तृत्व विरागी होसी, पुराण सुनना छोड़ि और कार्य भी ऐसा ही करेगा जहाँ बहुत रागादि होय । तातै बाकै भी पुराण सुने थोरी बहुत धर्मबुद्धि होय तो होय । और कार्यनितं यह कार्य भला ही है। ___ बहुरि कोई कहे - प्रथमानुयोग विर्षे अन्य जीवनि की कहानी है, तातें अपना कहा प्रयोजन सधै है ?
ताकों कहिए है - जैसे कामोपुरुपनि की कथा सुनें आपके भी काम का प्रेम बर्थ है, तैसें धर्मात्मा पुरुषनिकी कथा सुनें आपकै धर्मकी प्रीति विशेष हो है । तातै प्रथमानूयोग का अभ्यास करना योग्य है।"
उनका मोक्षमार्ग प्रकाशक आध्यात्मिक चिकित्सा शास्त्र है। इसमें उन्होंने आध्यात्मिक रोग मोह-राग-द्वेष की उत्पत्ति, स्थिति, वृद्धि एवं एटका निदान लिया है तणा को दूर करने की चिकित्सा पद्धति का वर्णन किया है । आध्यात्मिक विकारों से बचने के उपाय का नाम ही मोक्षमार्ग है, और इस ग्रंथ में उसी पर प्रकाश डाला गया है । उन्होंने इस पुरे ग्रंथ में वैद्य का रूपक बाँधा है। यहाँ लेखक स्वयं वैद्य है। किसी रोगी की चिकित्सा करने में जो पद्धति एक चतुर वैद्य अपनाता है, वही शैली लेखक ने इम ग्रंथ में अपनाई है। उन्होंने लिखा है :
"तहाँ जैसे वैद्य है सौ रोगसहित मनुष्यों प्रथम तो रोग का निदान बतावै, ऐसे यह रोग भया है। बहुरि उस रोग के निमिलते याक जो-जो अवस्था होती होय सो बतावै, ताकरि वाकै निश्चय होय जो मेरे ऐसे ही रोग है । बहुरि तिस रोग के दुरि करने का उपाय अनेक प्रकार बतावै अर तिस उपाय की ताकौ प्रतीति अनाव। इतना ती वैद्य का बतावना है। बहुरि जो वह रोगी ताका साधन करे तो रोगतै मुक्त होई अपना स्वभावरूप प्रवत । सो यहु रोगी का कर्तव्य है । तैसें ही इहाँ कर्मबन्धन युक्त जीवकौं प्रथम तो कर्मबन्धन का निदान बताइए है, ऐसे यह कर्मबन्धन भया है। बहरि उस कर्मबन्धन के निमित्तते याकै जो-जो अवस्था होती होय सो-सो बताइए हैं।
१ मो. मा० प्र०, ४२४-४२६