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________________ २२६ वर्ष-विषय और दार्शनिक विचार की प्रवृत्ति विर्षे इच्छा हो है सो इस इच्छा का नाम पुण्य का उदय है । याकौं जगत सुख मानै है सो सुख है नाही, दुःख ही है।" इच्छात्रों का उक्त बर्गीकरण उनका मौलिक है । इसके पूर्व इच्छाओं का इस प्रकार का वर्गीकरण अन्यत्र देखने में नहीं पाया । यद्यपि उक्त सभी इच्छाओं को वे दुःखरूप ही मानते हैं तथापि कषाय नामक इच्छा से उत्पन्न दुःखावस्था का उन्होंने बिस्तार से वर्णन किया है। उसमें होने वाले मरण पर्यन्त कष्ट का बारीकी से उल्लेख करने के उपरान्त वे निष्कर्ष इस प्रकार देते हैं : "तहाँ मरण पर्यन्त कष्ट तो कबूल करिए है पर क्रोधादिक की पीड़ा सहनी कबूल न करिए है। तातै यह निश्चय भया जो मरणादिकतें भी कषायनि की पीड़ा अधिक है । बहुरि जब याकै कषाय का उदय होइ तब कषाय किए बिना रह्या जाता नाहीं । बाह्य फषायनि के कारण प्राय मिले तो उनके आश्रय कषाय करै । न मिले तो आप कारण बनावै । जैसे व्यापारादि कषायनिका कारण न होइ तो जुना खेलना वा अन्य क्रोधादिक के कारण अनेक ख्याल खेलना वा दुष्ट कथा कहनी सुननी इत्यादि कारण बनावै है।" इसी प्रकार कामवासना, जिसकी पूर्ति को जगत सूखरूप मानता है, वे उसे महा दुःखरूप सिद्ध करते हुए लिखते हैं : __ "तिसकरि अति व्याकुल ही है। प्राताप उपजे है। निर्लज्ज ही है, धन खर्चे है 1 अपजसकौं न गिन है। परम्परा दुःख होइ वा दंडादिक होय ताकी न गिनै है। काम पीड़ातै बाउला हो है । मरि जाय है। सो रसग्रंथनि विर्षे काम की दश दशा कही हैं। तहाँ बाउला होना, मरण होना लिख्या है। वैद्यक शास्त्रनि में ज्वर के भेदनि विर्षे कामज्वर मरण का कारण लिख्या है। प्रत्यक्ष काम करि मरण पर्यन्त होते देखिए हैं | कामांधकै किछू विचार रहता नाहीं। १ गो. मा. प्र०, १०१ २ वही, ७६-५०
SR No.090341
Book TitlePandita Todarmal Vyaktitva aur Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages395
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Story
File Size7 MB
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