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________________ धर्म-विषय और शार्शनिक विचार छल करि औरनिको लौकिक कार्यनि के प्रथि धर्म साधन करना युक्त नाहीं । ऐसे ही अन्यत्र जानने' ।" पंडितजी ने जो वक्ता और श्रोता के लक्षण दिए हैं, उनमें उनका व्यक्तित्व स्पष्ट झलकता है। उनके अनुसार वक्ता का बाह्य व्यक्तित्व भी प्रभावशाली होना चाहिए । जैसे - कुलहीन न हो, अंगहीन न हो, उसका स्वर भंग न हो, वह लोकनिंदक अनीतिमुलक आचरण से सदा दूर रहना हो । ३९ सार शान्तरिक मान के साथ वाह्य व्यक्तित्व समन्वय ही अच्छे वक्ता की कसौटी है। वक्ता के समान उनके अनुसार श्रोता में भी तत्त्वज्ञान के प्रति सच्ची जिज्ञासा होनी चाहिए। वह मननशील हो और उद्यमी । उसका विनयवान होना भी जरूरी है। मोक्षमार्ग प्रकाशक के पंडित टोडरमल ही वक्ता हैं और वे ही श्रोता, वे ही शंकाकार हैं और वे ही समाधानकर्ता हैं। उक्त ग्रंथ में अभिन्न वक्ता-श्रोता का जो स्वरूप है वह अन्यत्र कहीं भी देखने को नहीं मिलता। मोक्षमार्ग प्रकाशक का शंकाकार और समाधानकर्ता उनके आदर्श श्रोता और वक्ता हैं । पठन-पाठन के योग्य शास्त्र वक्ता और श्रोता के स्वरूप के साथ ही उन्होंने आदर्श शास्त्र के बारे में भी विचार व्यक्त किए हैं। उनकी दृष्टि में वीतराग भाव के पोषक शास्त्र ही पठन-पाठन के योग्य हैं। वे लिखते हैं : "जातें जीव संसार विर्षे नाना दुःखनि करि पीड़ित हैं, सो शास्त्ररूपी दीपक करि मोक्षमार्गको पावें तो उस मार्ग वि आप गमन करि उन दुःखनितें मुक्त होय । सो मोक्षमार्ग एक वीतराग भाव है, तातें जिन शास्त्रनि विर्षे काहू प्रकार राग-द्वेष-मोह भावनि का निषेध करि वीतराग भाव का प्रयोजन प्रगट किया होय तिनिही शास्त्रनि का वांचना सुनना उचित है । बहुरि जिन शास्त्रनि विर्षे शृगार भोग कोतूहलादिक पोषि राग भाव का पर हिंसा-युद्धादिक पोषि द्वेष भाव का अर प्रतत्त्व श्रद्धान पोषि मोह भाव का प्रयोजन प्रगट किया होय ' मो० मा० प्र०, ४०२-४०३
SR No.090341
Book TitlePandita Todarmal Vyaktitva aur Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages395
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Story
File Size7 MB
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