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________________ १८० क रनार अविवार हतार लाना पड़ता हो, ऐसा नहीं है किन्तु जब किसी पदार्थ में कार्य सम्पन्न होता है तो तदनुकूल निमित्त सहज रहता है और उस कार्य का उससे नैमित्तिक-निमित्त सम्बन्ध भी सहज होता है। निमित्त बलपूर्वक उसमें हस्तक्षेप या सहयोग करता हो, ऐसा भी नहीं है। उक्त तथ्य का पंडित टोडरमल ने कई स्थानों पर विभिन्न संदर्भो में उल्लेख किया है । आत्मा में मोह-राग-द्वेष रूप विकागेत्पत्ति, तथा कर्मोदय एवं वाह्य अनुकूल प्रतिकूल सामग्री की उपस्थिति के संदर्भ में निमित्त-नैमित्तिक सम्बन्ध को वे इस प्रकार स्पष्ट करते है : . "इहाँ कोऊ प्रश्न करें कि कर्म तो जड़ है किछू बलवान नाही, तिनि करि जीव के स्वभाव का घात होना वा बाह्य सामग्री का मिलना कैसे संभवै ? ताका समाधान - जो कर्म पाप कर्ता होय उद्यम करि जीव के स्वभाव को घात, बाह्य सामग्री की मिलावै तब काम के चेतनपनौं भी चाहिए और बलवानपनौं भी चाहिए सो तो है नाही, सहज ही निमित्त-नैमित्तिक सम्बन्ध है । जब उन कर्मनि का उदयकाल होय तिस काल विर्षे आप ही आत्मा स्वभावरूप न परिशमै, विभावरूप परिणमै........ 'ब्रहरि जैसे सूर्य का उदय का काल विर्ष चकवा चकवीनि का संयोग होय तहाँ रात्रि विषं किसी नै द्वेषबुद्धि तें जोरावरि करि जुदे किए नाहीं। दिवम विष काहू ने करुणाबुद्धि ल्याय करि मिलाए नाहीं । सूर्य उदय का निमित्त पाय प्रापही मिले हैं अर सूर्यास्त का निमित्त पाय पाप ही बिछुरे हैं, ऐसा ही निमित्त-नैमित्तिक बनि रहा है। तैसे ही कर्म का भी निमित्त-नैमित्तिक भाव जानना' ।" उपादान निमित्त का सही ज्ञान न होने पर व्यक्ति अपने द्वारा कृत कार्यों (अपराधों) का कर्तत्व निमित्त पर थोप कर स्वयं निर्दोष बना रहना चाहता है, पर जैसे चोर स्वयंकृत चोरी का आरोप चाँदनी रात के नाम पर मढ़ कर दंड-मुक्त नहीं हो सकता, उसी प्रकार प्रात्मा भी अपने द्वारा कृत मोह-राग-द्रूष भावों का कर्तृत्व कर्मों पर थोप कर दुःख मुक्त नहीं हो सकता है । उक्त स्थिति में स्वदोषदर्शन और प्रात्मनिरीक्षण की प्रवृत्ति की प्रोर दृष्टि भी नहीं जाती है। १ मो० मा० प्र०, ३७
SR No.090341
Book TitlePandita Todarmal Vyaktitva aur Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages395
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Story
File Size7 MB
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