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________________ T * वर्ण्य विषय और दार्शनिक विचार देव १७३ जो वीतराग, सर्वज्ञ और हितोपदेशी हों, वे सच्चे देव हैं । जो जन्म भरण, राग-द्वेषादि अठारह दोषों से रहित हो, वे वीतराग हैं । तीन लोक व तीन काल के समस्त पदार्थों को एक समय में स्पष्ट जानें, वे सर्वज्ञ कहलाते हैं तथा आत्महित (मोक्षमार्ग) का उपदेश देने वाले हितोपदेशी कहे जाते हैं ' । अरहंत और सिद्ध परमेष्ठी सच्चे देव (भगवान्) हैं । जैन मान्यता में भगवान् अलग नहीं होते। जो भी आत्मा प्रात्मोन्मुखी पुरुषार्थ कर सम्यग्दर्शन- ज्ञान चारित्र की पूर्णता को प्राप्त कर वीतरागी हो अपने ज्ञान का पूर्ण विकास कर लेता है, वही परमात्मा वन जाता है 1 इस विश्व में प्रनन्त जीवादि पदार्थ अपनी-अपनी सत्ता में परिपूर्ण भिन्न-भिन्न अनादि अनन्त हैं । प्रत्येक पदार्थ अपने में होने वाले परिमन का स्वयं कर्त्ता हर्त्ता है। यह सम्पूर्ण जगत अनादि अनन्त है, इसे किसी ने भी नहीं बनाया है और न इसे कोई नष्ट ही कर सकता है । एक द्रव्य का कर्त्ता दूसरे द्रव्य को मानना द्रव्य की स्वतन्त्रता को खण्डित करना है। यद्यपि निमित्तादिक की अपेक्षा व्यवहार से एक द्रव्य का कर्त्ता दूसरे द्रव्य को कहा जाता है, तथापि परमार्थतः एक द्रव्य दूसरे द्रव्य का कर्ता हर्त्ता नहीं है । -- सच्चे देव का सही स्वरूप नहीं जानने वाले भक्तों को लक्ष्य करके पं० टोडरमल कहते हैं तिनि अरहंतन को स्वर्ग-मोक्ष का दाता, दीन दयाल, अधम उधारक, पतितपावन मानें हैं, सो अन्यमती कर्तृत्व बुद्धि ईश्वर कौं जैसें मानें हैं, तसे बहु श्ररहंत कौं मानें है। ऐसा नाहीं जानें है - फल तो अपने परिणामनि का लागे है, अरहंत तिनिकों निमित्त मात्र है, तार्त उपचार करि ये विशेषरण सम्भव है । वस्तुतः भगवान् जगत का ज्ञाता दृष्टा मात्र है, कर्ता-धर्ता नहीं । १ रत्नकरण्ड श्रावकाचार, अ० १ श्लोक ५-८ २ मो० मा० प्र०, ७५,१२८,१२६,१६०,१६१ ३ द्रव्यसंग्रह, गाथा ४ मो०मा०प्र०, ३२५
SR No.090341
Book TitlePandita Todarmal Vyaktitva aur Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages395
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Story
File Size7 MB
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