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________________ १४८ पंजित टोडरमल : व्यक्तित्व मौर कर्तृत्व __सकलचारित्र अधिकार में मुनिधर्म के स्वरूप का वर्णन है। इसमें मुनियों के षट् आवश्यक, बारह तप, तीन गुप्ति, पांच समिति, दश धर्म, बारह भावना और बाईस परीषहों का विस्तृत वर्णन है । 'रत्नत्रय ही मुक्ति का कारण है और रत्नत्रय मुक्ति का ही कारण है' - इस तथ्य को भी भूक्ष्मता से स्पष्ट किया है । अन्त में प्रशस्तिपूर्वक ग्रन्थ समाप्त हुआ है। यह भाषाटीका विवेचनात्मक गद्यशैली में लिखी गई है। यथास्थान विषय की स्पष्टता के अनुरोध से विषय विस्तार किया गया है, किन्तु अनावश्यक विस्तार कहीं भी देखने को नहीं मिलता। मुल में आए पारिभाषिक शब्दों की परिभाषाएँ दी गई हैं तथा उनके भेद-प्रभेदों को विस्तार से समझाया गया है। जैसे मूल श्लोक में निश्चय और व्यवहार शब्द आये । उन्हें स्पष्ट करने के लिए निश्चयव्यवहार की परिभाषा, उनके भेद एवं कथनपद्धति को स्पष्ट किया गया है तथा विषय के बीच उठने वाले प्रश्नों को स्वयं उठा-उठाकर समाधान किया गया है। मूल पाठ का समुचित अर्थ लिख कर सर्वत्र भावार्थ में विषय को विशेष रूप से स्पष्ट किया गया है। प्रत्येक मूल प्रलोक की उत्थानिका दी गई है तथा आवश्यकतानुसार सुक्ष्म विषय को उदाहरणों के द्वारा स्पष्ट किया गया है । जैसे :___ "यहाँ प्रश्न उपजे - जो जीव के भाव महा सूक्ष्म रुप तिनकी खबरि जड़ पुद्गल की कैसे होय । बिना खबर कैसे पुण्य-पाप रूप होय परनमें हैं। तिसका उनर - जैसे मंत्रसाधक पुरुष बैठा हुन्या छान मंत्र को जप है, उस मंत्र के निमित्त करि इसके बिना ही कीए किसी को पीड़ा उपज है, कोऊ प्राणान्त होय है, किसी का भला होय है, कोऊ विडम्बना रूप परनमें है, ऐसी उस मंत्र में शक्ति है जिसका निमित्त पाइ चेतन-अचेतन पदार्थ प्राप ही अनेक अवस्था की धरै हैं । तैसें अज्ञानी जीव अपने अंतरंग विष विभाव भावनि परनमें है, उन भावनि का निमित्त पाइ इसको बिना ही कीए कोऊ पुद्गल पुण्यरूप परनमें कोऊ पापरूप परनमें" । टीका सरल, सुबोध एवं संक्षिप्त शैली में लिखी गई है।
SR No.090341
Book TitlePandita Todarmal Vyaktitva aur Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages395
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Story
File Size7 MB
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