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गटिस गोरगत : व्यक्तित्व और कर्सत्व
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का अपना अलग-अलग प्रयोजन होता है, उसे समझे बिना व्यर्थ की शंकाएँ और विवाद उत्पन्न हो जाते हैं। उनका निराकरण करने के लिये प्रत्येक अनुयोग का अलग प्रयोजन इम में स्पष्ट किया गया है । प्रत्येक अनुयोग की कथनशंली में संभावित दीप-कल्पनानों को स्वयं उठा-उठा कर उनका सयुक्तिक निराकरण किया गया है तथा अपेक्षाज्ञान के अभाव में जिनागम में दिखाई देने वाले परस्पर विरोध का समुचित समाधान किया गया है । अन्त में अनुयोगों के अभ्यामक्रम पर विचार करते हुए ग्रागम अभ्यास की प्रेरणा दी गई है तथा अध्यात्म शास्त्रों के अभ्यास की विशेष प्रेरणा दी गई है, क्योंकि वस्तु स्वरूप का मर्म तो अध्यात्म शास्त्रों में ही है। अध्यात्म शास्त्र पढ़ने का निषेध करने सम्बन्धी अनेक तर्कों को स्वयं उठा-उठाकर उनका निराकरण किया गया है । '
नौवें अधिकार में मोक्षमार्ग का स्वरूप प्रारम्भ हुया है। इसमें सांसारिक सुख की अमारता एवं मोक्ष सुख की वास्तविकता पर विचार करने के उपरान्त 'मोक्ष की प्राप्ति पुरुषार्थ से ही संभव है', इस तथ्य को विस्तार से अनेक तर्को द्वारा समझाया गया है एवं मुक्ति प्राप्ति के लिये पर के सहयोग की अपेक्षा छोड़ कर स्वयं पुरुषार्थ करने की प्रेरणा दी गई है। तदुपरान्त मोक्षमार्ग का स्वरूप
आरम्भ करने के साथ ही लक्षण और लक्षणाभास पर भी विचार किया गया है। मोक्षमार्ग के प्रथम अंग सम्यग्दर्शन की परिभाषा, उसमें आए विभिन्न पदों की विस्तृत व्याख्या एवं उसमें उठने बाली शंकाओं का समाधान करने के माथ ही विभिन्न अनुयोगों में दी गई सम्यग्दर्शन की विभिन्न परिभाषाओं पर विस्तारपूर्वक विचार करते हुए उनमें समन्वय स्थापित किया गया है। सम्यग्दर्शन में जिन प्रयोजनभूत तत्त्वों की श्रद्धा यावश्यक है, उनकी संख्या ग्रादि के संबंध में भी सयुक्तिक विस्तृत विवेचन किया गया है । तत्पश्चात् सम्यग्दर्शन के भेद व उनके स्वरूप पर विचार करने के उपरान्त सम्यग्दर्शन के आठ अंग और पच्चीस दोषों का वर्णन प्रारम्भ किया था, किन्तु एक पृष्ठ भी न लिख पाए और ग्रंथ अधूरा रह गया।