________________
!
.
१२४
पंडित टोडरमल : व्यक्तित्व और कर्त्तृत्व
अधिकार शब्द का प्रयोग किया है । अतः अधिकार शब्द ही सर्वमान्य एवं ग्रंथकार को इष्ट है ।
'सं
आलोच्य ग्रंथ के प्रारम्भ में मंगलमय वीतराग - विज्ञान को नमस्कार किया है, तदुपरान्त पंचपरमेष्ठी को आठवें अधिकार को छोड़ कर प्रत्येक अधिकार का प्रारम्भ दोहा से किया गया है। ग्रंथ का आरम्भ मंगलाचरण रूप दो दोहीं से हुआ है पर या प्रत्येक अधिकार के प्रारम्भ में एक-एक दोहा है । प्रारम्भिक दोहों में वर्ण्य विषय का संकेत दे दिया गया है। सातवें के अतिरिक्त प्रत्येक अधिकार के अन्त में 'तुम्हारा कल्याण होगा' के मृदुल सम्बोधन में पाठकों को मंगल आशीर्वाद दिया गया है। ग्रंथ के सर्व अधिकारों का विषयानुसार स्वाभाविक विकास हुआ है ।
२
ग्रंथ का नाम मोक्षमार्ग प्रकाशक है, अतः इसमें मोक्षमार्ग का प्रतिपादन अपेक्षित है - पर मुक्ति बंधन-सापेक्ष है, अतः इसके प्रारम्भ में बंधन (संसार) की स्थिति और कारणों पर विचार किया गया है । आरम्भ के सात अधिकारों में यही विवेचना है। ग्राव अधिकार में जिनवाणी का मर्म समझाने के लिए उसके समझाने की विधि का सांगोपांग वर्णन है | नवम् अधिकार में मोक्षमार्ग का कथन प्रारम्भ हुआ है ।
प्रथम अधिकार ग्रंथ की पीटिका है। इसमें मंगलाचरणोपरान्त, मंगलाचरण में जिन्हें स्मरण किया गया है, उन पंचपरमेष्ठियों का स्वरूप उनके पूज्यत्व का कारण मंगलाचरण का हेतु, ग्रंथ की प्रामाणिकता और ग्रंथ निर्माण हेतु पर विचार किया गया है । तदुपरान्त बांचने-सुनने योग्य शास्त्र के स्वरूप तथा वक्ता और श्रोता के स्वरूप पर भी विचार किया गया है । अन्त में मोक्षमार्ग प्रकाशक के निर्माण और नाम की सार्थकता सिद्ध की गई है ।
" जो परमपद में स्थित हों, उन्हें परमेष्ठी कहते हैं । ये पांच होते हैं - अरहंत, सिद्ध, प्राचार्य, उपाध्याय और साधु ।
* दुखों से छूटने के उपाय को मोक्षमार्ग कहते हैं ।
मो० मा० प्र०, ३०