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परित टोडरमल : व्यक्तित्व और कर्तृत्व नामक ग्रंथ है । लब्धिसार-क्षपणासार की आगे की टोका पंडित टोडरमल ने उसके आधार पर बनाई है, जिसका उल्लेख उन्होंने लब्धिसार टीका के प्रारम्भ में तथा सम्यग्ज्ञानचंद्रिका प्रशस्ति में किया है।
सम्यग्ज्ञानचंद्रिका यद्यपि जीवतत्त्वप्रदीपिका का अनुसरण करती है तथापि उससे पूरी तरह बंधी हुई नहीं है। जहाँ कहीं चंद्रिकाकार को इष्ट हुग्रा और उन्होंने आवश्यक समझा. वहाँ विषय विस्तृत किया है । सहज बोधगम्य विषय को संकुचित भी किया है तथा
आवश्यक समझा तो अन्य ग्रंथों के अाधार पर विषय का विश्लेषण भी किया है । वे मात्र अनुवादक नहीं हैं, वरन् व्याख्याकार हैं । पंडितजी ने अपनी स्थिति को पीठिका में स्पष्ट कर दिया है।
पं० टोडरमल को सम्यग्ज्ञानचंद्रिका की रचना की प्रेरणा ब्र रायमल से प्राप्त हुई । उन्होंने स्वयं लिखा है :
"रायमल्ल साधर्मी एक, धरःम सधैया सहित विवेक ।
सौ नाना विधि प्रेरक भयो, तब यह उत्तम कारज थयो' ।।" ब्र० रायमल ने उन्हें मात्र प्रेरणा ही नहीं दी वरन् पुर्ण सहयोग दिया। जब तक उक्त टीका का निर्माण कार्य चलता रहा तब तक वे पंडितजी के साथ ही रहे । पंडित टोडरमल का स्वयं का विचार भी टीका लिखने का था पर अ० रायमल की प्रेरणा से यह महान् कार्य द्रुतगति से हया और अल्पकाल में ही सम्पन्न हो गया। उक्त संदर्भ में अ० रायमल अपनी जीवन पत्रिका में लिखते हैं :
पीछे उनसं हम कही तुम्हारे यां ग्रंथांका पर निर्मल भया है, तुम करि याकी भाषाटीका होय तो घरां जीवां का कल्याण होइ.........."तात तुम या ग्रंथ की टीका करने का उपाय शीघ्र करो,
१ "बहरि जो यह सम्बन्जानचंद्रिका नामा भापाटीका करिए है तिहिं वि संस्कृत टीका तं कहीं अर्थ प्रगट करने के अथि वा कहीं प्रसंगरूप वा कहीं अन्य ग्रंथ अनुसारि लेई अधिवा भी कथन करियना । हार कहीं अर्थ स्पष्ट न प्रतिभासेगा तो न्युन कपन होइगा ऐसा जानना ।" . रा. चं० पी०, १५ २ स० ० प्र०