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पंडित टोडरमल : व्यक्तित्व और कत्तस्य उनकी रचनाओं को दो भागों में बाँटा जा सकता है :(१) मौलिक रचनाएँ (२) व्याख्यात्मक टीकाएँ
मौलिक रचनाएं गद्य और पद्य दोनों रूपों में हैं। गद्य रचनाएँ चार शैलियों में मिलती हैं :
(क) वर्णनात्मक शैली (ख) पत्रात्मक शैली (ग) यंत्र-रचनात्मक (चार्ट) शैली (घ) विवेचनात्मक शैली
वर्णनात्मक शैली में समोसरगा आदि का सरल भाषा में सीधा वर्णन है । पंडितजी के पास जिज्ञासु लोग दूर-दूर से अपनी शंकाएँ भेजते थे, उनके समाधान में वह जो कुछ लिखते थे, वह लेखन पत्रात्मक शैली के अंतर्गत आता है । इसमें तर्क और अनुभूति का सुन्दर समन्बय है। शानी में एक बहुत बड़पूर्ण है।६ रटों का यह पत्र 'रहस्यपूर्ण बिट्टी' के नाम से प्रसिद्ध है। यंत्र-रचनात्मक शैली में चाटों द्वारा विषय को स्पष्ट किया गया है। 'अर्थसंदृष्टि अधिकार' इसी प्रकार की रचना है । विवेचनात्मक शैली में सैद्धान्तिक विषयों को प्रश्नोत्तर पद्धति में विस्तृत विवेचन करके युक्ति व उदाहरणों से स्पष्ट किया गया है। 'मोक्षमार्ग प्रकाशक' इस श्रेणी में आता है ।
पद्यात्मक रचनाएँ दो रूपों में उपलब्ध हैं :(क) भक्तिपरक (ख) प्रशस्तिपरक
भक्तिपरक रचनाओं में गोम्मटसार पूजा एवं ग्रंथों के आदि, मध्य और अन्त में प्राप्त फुटकर पद्यात्मक रचनाएँ हैं। ग्रंथों के अन्त में लिखी गई परिचयात्मक प्रशस्तियां प्रशस्तिपरक श्रेणी में आती हैं ।
पं० टोडरमल की व्याख्यात्मक टीकाएँ दो रूपों में पाई जाती हैं :(क) संस्कृत ग्रंथों की टीकाएँ (ख) प्राकृत ग्रंथों की टीकाएँ
संस्कृत ग्रंथों की टीकाएँ आत्मानुशासन भाषाटीका और पुरुषार्थसिद्ध युपाय भाषाटीका है। प्राकृत ग्रंथों में गोम्मदसार जीवकाण्ड, गोम्मटसार कर्मकाण्ड, लब्धिसार-क्षपणासार और त्रिलोकसार हैं, जिनकी भाषाटीकाएँ उन्होंने लिखी हैं।
उपर्युक्त वर्गीकरण इस चार्ट द्वारा समझा जा सकता है :