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________________ रचनाएँ और उनका वर्गीकरण पंडित टोडरमल प्राध्यात्मिक माधक थे। उन्होंने जैन दर्शन और सिद्धान्तों का गहन अध्ययन ही नहीं किया, अपितु उसे तत्कालीन जनभाषा में लिखा भी है। इसमें उनका मुख्य उद्देश्य अपने दार्शनिक चिन्तन को जनमाधारण तक पहुंचाना था । पंडितजी ने प्राचीन जैन ग्रंथों की विस्तृत, गहन परन्तु मुबोध भाषा टीकाएँ लिखीं। इन भाषा टीकानों में कई विषयों पर बहुत ही मौलिक बिचार मिलते हैं, जो उनके स्वतंत्र चिन्तन के परिमगाम थे। बाद में इन्हीं विचारों के अाधार पर उन्होंने कतिपय मौलिक ग्रंथों की रचना भी की। अभी तक पंडित टोडरमल की कुल ११ रचनाएं ही प्राप्त थीं। उनके नाम कालक्रम से निम्नलिखित हैं : (१) रहस्यपूर्ण चिट्ठी (वि० सं० १८११) (२) गोम्मटसार जीवकाण्ड भाषाटीका । (३) गोम्मटसार कर्मकाण्ड भाषाटीका । सम्यग्ज्ञानचंद्रिका (४) अर्थसंदृष्टि अधिकार । (वि०सं० १८१८) (५) लब्धिसार भाषाटीका क्षपणासार भाषाटीका (७) गोम्मटसार पूजा (वि० सं० १८१५-१८१८) (८) त्रिलोकसार भाषाटीका (वि०सं० १८१५-१८२३) (६) मोक्षमार्ग प्रकाशक [अपूर्ण] (वि० सं० १८१८-१८२३-२४) (१०) प्रात्मानुशासन भाषाटीका (वि.सं. १८१८-१८२३) (११) पुरुषार्थसिद्ध्युपाय भाषाटीका [अपूर्ण] (वि०सं० १८२१-१८२७) ऐलक पन्नालाल सरस्वती भवन, बम्बई में प्राप्त त्रिलोकसार में एक २० पृष्ठीय 'समोस रगा रचना वर्णन' नामक रचना और प्राप्त हुई है, जो कालक्रम में त्रिलोकसार भाषाटीका के बाद आती है । इनमें से सात तो टीका ग्रंथ हैं और पांच मौलिक रचनाएँ हैं ।
SR No.090341
Book TitlePandita Todarmal Vyaktitva aur Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages395
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Story
File Size7 MB
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