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________________ ६६ पंरित टोडरमल : व्यक्तित्व और करिव शास्त्रसभा में हजार-बारह सौ स्त्री-पुरुष प्रति दिन प्राते थे । बालकबालिकाओं एवं प्रौढ़ पुरुष एवं महिला वर्ग के धार्मिक अध्ययनअध्यापन की पूरी-पूरी व्यवस्था थी। उक्त सभी व्यवस्था की चर्चा अ० रायमल ने विस्तार से की है। उनका कार्यक्षेत्र सम्पूर्ण भारतवर्ष था। उनका प्रचार कार्य ठोस था। यद्यपि उस समय यातायात की कोई सुविधाएँ नहीं थी, तथापि उन्होंने दक्षिण भारत में समुद्र के किनारे तक धवलादि सिद्धान्तशास्त्रों की प्राप्ति के लिए प्रयत्न किया था । उक्त संदर्भ में व० रायमल लिखते हैं, "और दोय-च्यार भाई धवल, महाधवल, जयधवल लेने कं दक्षिरग देशविर्षे जनबद्रीनगर वा समुद्र ताईं गये थे।" बहुत परेशानी उठाने के बाद भी, यहाँ तक कि एक व्यक्ति की जान भी चली गई, उन्हें उक्त शास्त्र प्राप्त करने में सफलता नहीं मिली, किन्तु उन्होंने प्रयास करना नहीं छोड़ा। ब्र० रायमल इसी संदर्भ में आगे लिखते हैं : "ताते हैं देश में सिद्धान्तां का आगमन हूवा नाहीं । रुपया हजार दोय २०००) पांच-सात प्रादम्यां के जावै आये खरचि पझ्या । एक साधर्मी डालूराम की उहां ही पर्याय पूरी हुई।........... बहुरि या बात के उपाय करने मैं बरस च्यारि पांच लागा। पांच विश्वा पौरू भी उपाय बतॆ है । औरंगाबाद सं सौ कोस पर एक मलयखेड़ा है तहां भी तीन सिद्धान्त बिराज है । ..........."मलयखेड़ा सूं सिद्धान्त मंगायवे का उपाय है सो देखिए ए कार्य वणने विष कठिनता विशेष है" । सम्पर्क और साहचर्य पण्डित टोडरमल के अद्वितीय सहयोगी थे साधर्मी भाई ख० रायमल जिन्होंने अपना जीवन तत्त्वाभ्यास और तत्त्वप्रचार के लिए ही समर्पित कर दिया था। उनकी प्रेरणा से ही पं० टोडरमल ने ' जीवन पत्रिका, परिशिष्ट १ २ इ० वि० पत्रिका, परिशिष्ट १ " वही
SR No.090341
Book TitlePandita Todarmal Vyaktitva aur Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages395
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Story
File Size7 MB
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