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जीवनवृत्त
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यद्यपि उनके जीवन का अधिकांश समय जयपुर और सिंघारणा में ही बीता था तथापि उनके द्वारा अध्यात्म-तत्त्व का प्रचार सुदूरवर्ती क्षेत्रों में भी हुआ था । ' दूर-दूर से लोग उनसे चर्चा करने आते और उनसे अपनी शंकाओं का समाधान प्राप्त कर अपने को कृतार्थ मानते थे । साधर्मी भाई ब्र० रायमल शाहपुरा से उनसे मिलने सिंघाणा गए तथा उनकी प्रतिभा से प्रभावित होकर तीन वर्ष तक वहीं तत्त्वाभ्यास करते रहे । जो व्यक्ति उनके पास न आ सकते थे, वे पत्र-व्यवहार द्वारा अपनी शंकाओं का समाधान किया करते थे । इस संदर्भ में मुलतान वालों की शंकाओं के समाधान में लिखा गया पत्र अपने आप में एक ग्रन्थ बन गया है । 'शान्तिनाथ पुराण वचनिकाकार' पं० सेवाराम और गंभीर न्याय सिद्धान्त-ग्रन्थों के टीकाकार पं० जयचन्दजी छाबड़ा जैसे कई बड़े-बड़े विद्वान् भी आपके द्वारा सुपंथ में लगे थे एवं कई विद्वानों ने आपसे प्रेरणा पाकर अपना जीवन माँ सरस्वती की सेवा में समर्पित कर दिया था ।
उनकी आत्मसाधना और तत्त्वप्रचार का कार्य सुनियोजित एवं सुव्यवस्थित था । मुद्रण की सुविधा न होने से तत्सम्बन्धी प्रभाव की पूर्ति हेतु दश- बारह सर्वतनिक कुशल लिपिकार शास्त्रों की प्रतिलिपियाँ करते रहते थे । पण्डित टोडरमल का व्याख्यान सुनने उनकी
" "देश बुंढारह आदि दे, सम्बोषे बहु देश । रचिरचि ग्रन्थ कठिन किए, टोडरमल्ल महेश ।। "
- श० पु० ब० प्र०
२ प्रदेश-देश का प्रश्न यहां श्रात्रं तिनका समाधान होय उहां पहुंचे" । - जीवन पत्रिका, परिशिष्ट १ 'रहस्यपूर्ण चिट्टी' जिसका विस्तृत परिचय तीसरे श्रध्याय में दिया गया है । * "वासी श्री जयपुर तनों, टोडरमल्ल त्रिपाल ।
विशाल ||
ता प्रसंग को पायकै गयो सुपंथ तिनही को उपदेश लहि, सेवाराम समान । रच्यो ग्रन्थ शुभकीति को बड़े हर्ष अधिकान ।। "
* सर्वार्थसिद्धि यचनिका प्रशस्ति
- शा० पु० ब० प्र०