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The five astikayas are the essence of life. It should be understood that the liberated (the Siddha) only have the essence of life, which is the essence of the four breaths. ||30||
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________________ पंचास्तिकाय प्राभृत जीवत्व है। मुक्तको ( सिद्धको ) तो केवल भावप्राणोंका ही धारण होनेसे जीवत्व है ऐसा समझना ।।३०॥ संस्कृत तात्पर्यवृत्ति गाथा-३० अथ जीवत्वगुणव्याख्यानं क्रियते–'पाणेहिं इत्यादि पदखण्डनरूपेण व्याख्यानं क्रियते । पाणेहिँ चदुहिं जीवदि-यद्यपि शुद्धनिश्चयनयेन शुद्धचैतन्यादिप्राणैर्जीवति तथाप्यनुपचरितासद्भूतव्यवहारेण द्रव्यरूपैस्तथाशुद्धनिश्चयनयेन भावरूपैश्चतुर्भि: प्राणैः संसारावस्थायां वर्तमानकाले जीवति, जीविस्सदि भाविकाले जीविष्यत्ति, जो हु-यो हि स्फुटं । जीविदो पुवं-जीवितः पूर्वकाले, सो जीवो-स: कालत्रयेपि प्राणचतुष्टयसहितो जीवो भवति, पाणा पुण बलमिंदियमाउउस्सासो ते पूर्वोक्तद्रव्यभावप्राणा: पुनरभेदेन बलेन्द्रियायुरुच्छ्वासलक्षणा इति । अत्र सूत्रे मनोवाक्कायनिरोधेन पंचेन्द्रियविषयव्यावर्तनबलेन च शुद्धचैतन्यादिशुद्धप्राणसहितः शुद्धजीवास्तिकाय एवोपादेयरूपेण ध्यातव्य इति भावार्थः ।।३०।। हिन्दी तात्पर्य वृत्ति गाथा-३० अन्वयसहित सामान्यार्थ-( जो ) जो (हु ) प्रगटपने ( चदुहिं ) चार ( पाणेहिं ) प्राणोंसे (जीवदि) जीता है (जीवस्सदि) जीवेगा व ( पुव्वं जीविदो) पूर्वमें जीता था ( सो जीवो) वह जीव है। (पुण) तथा (पाणा) प्राण (बलम्) बल (इन्द्रियं) इन्द्रिय, (आउ) आयु ( उस्सासो) श्वासोश्वास हैं। विशेषार्थ-यद्यपि जीव शद्ध निश्चयनसे शद्ध चैतन्यादि प्राणोंसे जीता है तथापि अनुपचरित असद्भूत व्यवहारनयसे द्रव्यरूप धार प्राणोंसे तथा अशुद्ध निश्चयनयसे भावरूप चार प्राणोंसे संसार अवस्थामें वर्तमान कालमें जी रहा है, भविष्यमें जीवेगा व आगे जी चुका है। वे पूर्वोक्त द्रव्य प्राण तथा भाव प्राण अभेदसे बल, इन्द्रिय, आयु, श्वासोच्छवास है। यहाँ यह भावार्थ है कि मन वचन कायको रोक करके व पांचों इन्द्रियोंके विषयोंसे वैराग्य भावके बलसे जो शुद्ध चैतन्य आदि प्राणोंका धारी शुद्ध जीवास्तिकाय है उसीको उपादेय रूपसे ध्यान करना चाहिये ।।३०।। समय व्याख्या गाथा-३१-३२ अगुरु लहुगा अणंता तेहिं अणंतेहिं परिणदा सव्वे । देसेहिं असंखादा सिया लोगं सव्व-मावण्णा ।।३१।। केचित्तु अणा-वण्णा मिच्छादसण-कसाय-जोगजुदा । विजुदा य तेहिं बहुगा सिद्धा संसारिणो जीवा ।।३२।।
SR No.090326
Book TitlePanchastikay
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShreelal Jain Vyakaranshastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages421
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size11 MB
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