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श्री वृषभाय नमः श्रीमानतुङ्गाचार्यविरचितम् भक्तामर स्तोत्रम् ( श्रीआदिनाथस्तोत्रम् )
( वसन्ततिलका छन्द ) भक्तामरप्रणतमौलिमणिप्रभाणा
मुद्योतक दलितपापतमोवितानम् ! सम्यक् प्रणम्य जिनपादयुगं युगादा
वालम्बनं भवजले पततां जनानाम् ।। १ ।। यः संस्तुतः सकलावाङ्मयतत्त्वबोधा
दुद्भूतबुद्धिपटुभिः सुरलोकनाथैः । स्तोत्रैर्जगत्रितयचित्तहरैरुद्वारैः, स्तोष्ये किलाहमपि तं प्रथमं जिनेन्द्रम् ।। २ ।।
(युग्मं ) कविवर पं० गिरधर शर्मा नवरत्न-कृत हिन्दी-पद्यानुवाद हैं भक्त-देव-नत मौलि-मणि प्रभाके,
उद्योत-कारक, विनाशक पापके हैं। आधार जो भव- पयोधि पड़े जनोंके,
अच्छी तरा नम उन्हीं प्रभुके पदोंके ।।१।।
१. द्वाभ्यां युग्ममिति प्रोक्तं त्रिभिः श्लोकैर्विशेषकम् ।
कलापकं चतुर्भिः स्यानध्वं कुलकं स्मृतम् ।।
जहाँ दो श्लाकों में क्रिया का अन्वय हा उसे युग्म, तीन में हो उस विशेषक चार : हो उसे कलाप और पाँच, छह आदि में ही उसे कुलक कहते हैं ।