SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 181
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १७६ : पंचस्तोत्र ____ अन्वयार्थ (साश्चर्यैः ) आश्चर्ययुक्त ( श्वेतातपत्रत्रयचभरिरुहाशोकभाश्चक्रभाषापुष्पौघासारसिंहासनसुरपटहै: ) सफेद छत्रत्रय, चँवर, अशोकवृक्ष, भामण्डल, दिव्यध्वनि, पुष्प-समूह की वृष्टि, सिंहासन और देवदुन्दुभिरूप ( अष्टभिः प्रातिहार्यैः ) आठ प्रातिहार्यों के द्वारा ( भ्राजमानः) शोभायमान (सुरमनुजसभाम्भोजिनीभानुमाली) देव और मनुष्यों की सभा को विकसित करने के लिये सूर्य तथा (पादपीठीकृतसकलजगत्पालमौलि: ) जिन्होंने सब राजाओं के मुकुटों को अपने पावों का पीठ-आसन बनाया है ऐसे ( जिनेन्द्रः) जिनेन्द्रदेव (न: पायात्) हम सबकी रक्षा करें। भावार्थ--जो आठ प्रातिहार्यों से शोभायमान हैं, जो मनुष्य और देवों की सभा को हर्षित करते हैं तथा जिनके चरणों में जगत् के सब राजा अपना मस्तक झुकाते हैं वे जिनेन्द्रदेव हमारी रक्षा करें ।।९।। नृत्यत्स्वर्दन्तिदन्ताम्बुरुहवननटन्नाकनारी निकायः सद्यस्त्रलोक्येयात्रोत्सवकरनिनदातोद्यमाद्यन्निलिम्पः । हस्ताम्भोजातलीलाविनिहितसुमनोहामरम्यामरस्त्रीकाम्य: कल्याणपूजाविधिषु विजयते देव देवागमस्ते ।।१०।। देव ! आपकी शुभ कल्याणकविधि में करते नृत्य ललाम ! सुर-गज के दन्तों पर नर्तित, सुर-वधुओं से शोभाधाम ।। त्रिभुवन-यात्रा-उत्सव-ध्वनि से, मुदित सुरोंसे और ज्वलन्त । सुर-सुन्दरियों द्वारा सुन्दर वह देवागम है जयवन्त ॥१०॥ टीका-हे देव ! विजयते कोऽसौ देवागमः । देवानामिन्द्राधमराणामागमनं केषु कल्याणेषु गर्भावतारणादिमहोत्सवेषु ये पूजाविधयस्तेषु कस्य सम्बन्धिषु ते तव किंविशिष्टः नृत्यंश्चासौ स्वर्दन्ती च ऐरावतस्तस्य दन्तास्तेषु अम्बुरुहवनानि कमलषण्डानि तेषु नटन्तो नृत्यन्तो नाकनारीनिकाया देवाङ्गनागणा यत्र स तथोक्तः । पुनः किंविशिष्टः सधस्तत्काल एव त्रैलोक्यस्य यात्रोत्सवं गमनोद्धर्षं करोति स
SR No.090323
Book TitlePanchstotra Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain, Syadvatvati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Worship
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy