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कल्याणमन्दिर स्तोत्र : १०७ ( विगलितमलनिचयाः 'सन्तः') कर्मरूपी मल-समूहसे रहित हो (अचिरात् ) शीघ्र ही ( मोक्षम् प्रपद्यन्ते) मुक्तिको पाते हैं।
भावार्थ-हे भगवन् ! जो भक्तिसे गद्गद चित्त हो आपकी स्तुति करते हैं, वे स्वर्गके सुख भोग बहुत जल्दी आठ कर्मोका नाशकर मोक्ष प्राप्त कर लेते हैं ।
स्वर्गनके सुख भोगकर, पावे मोक्ष निदान । इति श्रीकुमुदचन्द्राचार्य अपरनाम श्रीसिद्धसेनदिवाकरेण प्रणीनं
कल्याणमन्दिरस्तोत्रं-श्रीपार्श्वनाथस्तोत्रं सम्पूर्णम् ।