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________________ महाकद सिह विरह रज्जुण्णचरित समीक्षात्मक प्रस्तावना 1. अप्रकाशित पज्जुण्णचरिउ की हस्तलिखित उपलब्ध प्रतियों का परिचय ___ पज्जुग्णचरिउ (प्रद्युम्नचरित) अद्यावधि अप्रकाशित ग्रन्थ है, जिसके सम्पादन एवं समीक्षात्मक अध्ययन में प्राच्य शास्त्र भण्डारों में उपलब्ध निम्न हस्तलिखित प्रतियों का उपयोग किया गया है। अध्ययन की सुविधा के लिए उन्हें अ एवं ब, जैसे सांकेतिक नाम प्रदान किए गए हैं। उन प्रतियों का परिचय इस प्रकार है अ. प्रति – यह प्रति आमेर शास्त्र-भंडार, जयपुर (राजस्थान) में सुरक्षित है। इसका प्रारम्भ इस प्रकार होता है___ओं ।। स्वस्ति ।। श्री जिनाय नमः ।। खमदमजमणिलयहो तिहुअण तिलयहो वियलिय कम्मऊलंकहो। धुइ करमि ससुत्तिए अइणिसभतिए हरिकुतगयणससंकहो।। छ ।। पगवेग्गुणु णेमिजिसरहो भब्बयणकमलसरणेसरहो। भक्तर उम्मूलणवारणही कुसुमसर पसरवि णिवारणहो ।। .........इत्यादि। तथा उसका अन्त निम्न प्रकार हुआ है: जं कि पि हीण अल्यिं विउसासोहंतु तंपि इय कव्वो। धिछत्तणेण रइयं खमंतु सब्बे वि मह गुरुणो ।। प्रद्युम्नचरित्रं समाप्तमिति ।। ___संवत् 1553 वर्षे भाद्रपदमासे शुक्लपक्षे पूर्णमास्यां तिथी. बुधवासरे शतिभिषनक्षत्रे वारियाननान्नियोगे श्रीमूलसंरे बलात्कारगणे सरस्वतीगच्छे। कुंदकंदाचार्यान्वये भट्टारक श्रीपद्मनन्दिदेव तत्प? भट्टारक श्रीशुभचन्द्रदेवस्तत्पट्टे भट्टारक श्रीजिनचन्द्रदेव आचार्य श्रीकीर्तिदेव तत्शिष्य ब्रह्मचारि लाखा देव गुरु भक्तवत् । गोत्र चोरमंडण सवाई राजा तस्य भार्या फोदी तस्य पुत्र साहमहलू तस्यभार्या पूरी तस्य पुत्र साह नाथू हम्फराज । सुय ताल्हण श्रेलिपुत्र तस्य भार्या अणभूशास्त्रपरदवन (प्रद्युम्न) 11 व्रतदशलाक्षणको, 11 ब्रह्मचारि लाखहै कर्मक्षयनिमित्तघटायो। रत्तनंदिन शुभं भवतु ।।श्री।। श्रीकृष्णदास लिखितं ।। श्रियार्थे । । उक्त प्रति में कुल पत्र संख्या 10! (+1) है। इस प्रति के पृष्ठों में पंक्ति संख्या का क्रम सुनिश्चित नहीं है। किसी में 12 पंक्तियाँ हैं (यथा पृ0 101), तो किसी में 16 पंक्तियों (यथा पृ०87) और किसी में 15 पंक्तियाँ (यथा मृ०।)। इसी प्रकार प्रति पंक्ति में वर्गों की संख्या भी अनिश्चित है। किसी पंक्ति में 28 वर्ण हैं तो किसी में 33 । नत्र संख्या प्रन्धारम बाले पृष्ठ से प्रारम्भ होती है। प्रथम पत्र के पीछे वाला पृष्ठ अलिखित है किन्तु उस पर "प्रद्युम्नचरित" लिखा हुआ है। इसने हाँशियों का क्रम भी अनिश्चित है। प्रथम पृष्ठ का बायाँ हाँशिया ]" तथा दायाँ हाँशिया 1.2", उपरला हॉशिया 1.3" तथा निचला 1.3" है । यही क्रम बदल कर पृ०सं० 56 के हॉशिये 1.5" (बायां), 1" (दायां). 2" (उपरला) तथा 1.1" (निचलः) है। दाएँ एवं बाएँ हाँशिये कलाविहीन 2-2 दुहेरी पंक्तियाँ खींचकर काली स्याही से बनाये गये हैं। ___ इस प्रति का कागज मटमैला है । बरसाती नमी के प्रभाव से इसका कागज गलित हो रहा है। पृष्ठों के किनारे क्षीण हो रहे हैं। सब कुल मिला कर इसा प्रति की दशा जीर्ण-शीर्ण कही जा सकती है। इस प्रति में सर्व कली स्याही का प्रयोग किया गया है। लेखन में मोटी कलम का प्रयोग किया गया है। न्य की सन्धि-समाप्ति-सूचना, पत्ता, छन्द नाम एवं छन्द संख्या लाल रंग से रंगे हुए हैं। हाँ, पत्र संख्या 101 ले दार बाएँ हाँशियों पर लाल स्याही के ऊपर-नीचे दो वागावलियों से संयुक्त ।-1 शून्य अंकित्त किया है।
SR No.090322
Book TitlePajjunnchariu
Original Sutra AuthorSinh Mahakavi
AuthorVidyavati Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages512
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size12 MB
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