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________________ महाफा सिंह विरइउ पज्जण्णपरित [349 प्रतिलिपिकार प्रशस्ति प्रद्युम्नचरितं समाप्तमिति । संवत् 1553वर्षे भाद्रपदमासे शुक्ल-पक्षे पूर्णमास्यां तिथौ बुधवासरे शतिभिषा नक्षत्र वरियानन त्रियोगे। श्रीमूलसंघे बलात्कार-गणे, सरस्वतीगच्छे, कुंदकुंदाचार्यान्वये, भट्टारक श्री पद्मनंदिदेव: तत्पट्टे भट्टारक श्रीशुभचन्द्रदेवस्तत्पट्टे भट्टारक श्रीजिनचंद्रदेव: आचार्य श्रीकीर्तिदेव: तत्शिष्य ब्रह्मचारि लाखा देव गुरुभक्त । गोत्र चोर मंङग समाई राजा तस्य भार्या लोदी तस्य पुत्र साहमहलु तस्य भार्या पूरी तस्य पुत्र साह नाथू हम्फराज सुय ताल्हण श्रेष्ठि पुत्र तस्य भार्या अणभू सास्त्र परवचन - व्रत दसलाक्षणको ब्रह्मचारि लाखाहे कर्मक्षयनिमित्त घटायौ ।। रत्तंदिनौ शुभं भवतु ।। श्री।। श्रीकृष्णदास लिखितं श्रियार्थे । । प्रतिलिपिकार प्रशस्ति ___ संवत् 1553 वर्ष के भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष की पूर्णमासी तिथि, बुधवार, शतभिषा नक्षत्र, दरियानत त्रियोग काल में प्रस्तुत प्रद्युम्नचरित (की प्रतिलिपि का कार्य) समाप्त हुआ। श्री मूलसंघ बलात्कारगण, सरस्वती गच्छ कुन्दकुन्दाचार्य की परम्परा में भट्टारक श्री पद्मनन्दिदेव हुए, उनके पट्ट में भट्टारक श्रीजिनचन्द्रदेव एवं आचार्य श्रीकीर्तिदेव हुए। उनके शिष्य एवं देव, गुरु के भक्त ब्रह्मचारी लाखा हुए। उन लाखा का गोत्र चौरमण्डन था। उनके काल में सवाई राजा (सवईराज) का राज्य था। उनकी पत्नी का नाम फोदी था, जिसका पुत्र शाह महलू था। महलू की भार्या का नाम पूरी था। उसके पुत्रों के नाम थेशाह नाथू एवं हम्फराज । इन दोनों में से श्रेष्ठ-पुत्र शाह नाथू का पुत्र ताल्हण हुआ, जिसकी भार्या का नाम अणभू था। उस अणभू ने दशलक्षणव्रत में शास्त्र-प्रवचन हेतु तथा अपने कर्मों को क्षय करने हेतु ब्रह्मचारी लाखा से इस ग्रन्थ की प्रतिलिपि कराई। रात्रि-दिन शुभ हो। श्री। उसी प्रतिलिपि के आधार पर सभी के कल्याणार्थ श्रीकृष्णदास ने इस ग्रन्थ की (पुन:) प्रतिलिपि की। 000
SR No.090322
Book TitlePajjunnchariu
Original Sutra AuthorSinh Mahakavi
AuthorVidyavati Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages512
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size12 MB
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