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________________ करता है, वही मोक्ष को प्राप्त करता है। यह समझना व्यर्थ है कि मन्त्र-तन्त्र आदि से मोक्ष मिलता है। कोई पुरुष मन्त्रादि में कितना ही चतुर क्यों न हो, लेकिन उससे मोक्ष प्राप्त नहीं कर सकता। मोक्ष तो दूर रहा, बिना आत्मज्ञान-ध्यान के कोई मोक्ष-मार्गी नहीं हो सकता। आगम और परमागम में सर्वत्र सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र तीनों की एकता को मोक्षमार्ग कहा है। निज शुद्धात्मा की प्रतीति (श्रद्धान) हुए बिना किसी को सम्यग्दर्शन नहीं होता। सम्यग्दर्शन का प्रमुख (ज्ञापक) लक्षण निज शुद्धात्मा का अनुभव ही है। यदि आत्मा का श्रद्धान नहीं हुआ; तो परमात्मा, शुद्धात्मा या परमतत्त्व का श्रद्धान नहीं होगा और परमार्थ से तत्त्व जाने बिना परमार्थभूत देव, शास्त्र, गुरु का श्रद्धान नहीं हो सकता। तब फिर सम्यक्दर्शन कैसे हो सकता है? इसलिए आत्मा को जानना, पहचानना, अनुभव करना ही मुख्य लक्षण है। खंतु पिवंतु वि जीव जइ पावहि सासयमोक्छु। रिसहु भडारउ किं चवइ सयलु वि इंदियसोक्खु ॥64॥ शब्दार्थ-खंतु-खाते हुए; पिवंतु वि-पीते हुए भी; जीव; जइ-यदि; पावहि-पाते हो; सासय-शाश्वत; मोक्खु-मोक्ष; रिसह भडारउ-ऋषभ भट्टारक, पूज्य वृषभदेव, आदिनाथ; किं-क्यों; चवइ-त्यागा है; सयलु वि-सभी; इंदिय सोक्खु-इन्द्रियसुख।। अर्थ-हे जीव! यदि तुम खाते-पीते हुए शाश्वत मोक्ष पाना चाहते हो (तो यह तुम्हारी भूल है), तो महाराज ऋषभदेव ने सम्पूर्ण इन्द्रियों का सुख क्यों त्यागा? (वास्तव में सुख इन्द्रियों में नहीं, अपने अतीन्द्रिय निर्विकल्प स्वभाव में है।) भावार्थ-संसार में रहने वाले सामाजिक प्राणी स्त्री-पुरुष ही नहीं, पशु-पक्षी, कीट-पतंगे भी अपनी भूख-प्यास शान्त कर भौतिक सुखों की वांछा रखते हैं। भोजन-पान, नींद-विश्राम, तरह-तरह के भय और उनका संरक्षण एवं इन्द्रियों के विषय-भोगों में रात-दिन लिप्त रहते हैं। बौद्धिक प्राणी भी ऐसा मानते हैं कि यदि भौतिक समृद्धि न हो, तो फिर जीवन क्या है। मनुष्य की सम्पूर्ण जीवन-कथा इन्द्रियों की तथा मानसिक तुष्टि-पुष्टि से भरपूर है। इसलिए परमात्मा और धर्म को मानने वाले भी भौतिकता की धूल को नहीं झड़ा पाते हैं। इस स्थिति का वर्णन करते हुए पं. द्यानतरायजी कहते हैं1. अ खंत; क, द, ब खंतु; स खंतइ; 2. अ पिवंतुः क, द पियंतु; ब पिवतइ; स पिवंतइ; 3. अ भंडारिहि; क, द, ब, स भडारउ। 88 : पाहुडदोहा
SR No.090321
Book TitlePahud Doha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages264
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
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