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________________ सिव विणु सत्ति ण वावर सिउ ' पुणु सत्तिविहीणु । दोहिं वि' जाणइ सयलु जगु बुज्झइ मोहविलीणु ॥ 56 ॥ शब्दार्थ-सिव-शिव; विणु - बिना; सत्ति - शक्ति; ण- नहीं; वावरइ - व्यापार होता है; सिउ - शिव; पुणु - फिर; सत्तिविहीणु-शक्ति (से); विहीन; दोहिं वि–दोनों को ही; जाणइ - जानता है; सयलु जगु -सम्पूर्ण जगत; बुज्झइ - जानता है; मोहविलीणु - मोह विलीन ( हो जाता है ) । अर्थ - शिव के बिना शक्ति का व्यापार नहीं होता और शक्ति से रहित शिव कुछ नहीं कर सकता। इन दोनों को जान लेने पर सम्पूर्ण जगत् मोह में डूबा हुआ समझ में आने लगता है और मोह विलीन हो जाता है । भावार्थ - रहस्यवाद का मूल अभिप्राय उक्त दोहे में निहित है । 'शिव' का यहाँ पर अभिप्राय है - परम सुख या अतीन्द्रिय पूर्ण ज्ञानानन्द । प्रत्येक आत्मा का स्वभाव ज्ञानानन्द है। बिना शक्ति तथा गुणों के कोई द्रव्य नहीं है और जो भी द्रव्य है, वह परिणमनशील है। प्रत्येक द्रव्य का व्यापार उसके अपने परिणमन स्वभाव से होता है। उसके अपने परिणमन में कोई अन्य शक्ति या द्रव्य कारण नहीं होता; स्वभाव स्वयं कारण है । इसलिए स्वभाव रूप परिणमन सिद्ध भगवान् में भी पाया जाता है । यदि बीज में शक्ति न हो, तो मिट्टी में डालने के बाद अंकुरण होना, फूटना, पौधा बनना, पत्ते, फल-फूल लगना कैसे सम्भव है? अतः प्रत्येक द्रव्य अपनी योग्यता से विकसित होता है। अनेक बीज एक साथ एक-सी उर्वरक भूमि में एक ही समय में बोये जाते हैं, लेकिन कुछ विकसित, अर्द्ध विकसित या विशेष रूप से विकसित होते देखे जाते हैं । । परम सुखमय निर्वाण को 'शिव' कहते हैं । जिसने बाधा रहित, अक्षय, अनन्त सुख को प्राप्त कर लिया है, वह भी शिव है। कहा भी है शिवं परमकल्याणं निर्वाणं ज्ञानमक्षयम् । प्राप्तं मुक्तिपदं येन स शिवः परिकीर्तितः ॥ द्रव्यसंग्रह, गा. 14 टीका यदि वस्तु में स्वतः शक्ति न हो, तो उसे कोई बना नहीं सकता, वस्तु में डाल नहीं सकता। बिना शक्ति के वस्तु का विकास नहीं हो सकता । वस्तु की शक्ति पर की अपेक्षा नहीं रखती। (समयसार कलश, 119 ) इसलिए वस्तु की प्रकाशक तथा विकासक स्वतः उसकी शक्ति है । 1. अ, क, द, स सिउ; ब सिव 2. अ दोहिमि ब, स दोहिम्मि; क, द दोहिं मि । 80 :
SR No.090321
Book TitlePahud Doha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages264
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
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