SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 68
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ शरीरादि से भलीभाँति भिन्न जान लेते हैं। वास्तव में भेद-ज्ञान होने पर आराधना का मार्ग प्रशस्त हो जाता है। इसलिए ज्ञानी यह विचार करता है कि जिसने उस एक अखण्ड ज्ञायक को जान लिया, उसे अब कुछ अन्य को जानने से क्या लाभ है? उसके लिए तो अन्य को जानना व्यर्थ ही है। कहा भी है एकै साधे सब सधे, सब साधे सब जाय। . एक निज शुद्धात्मा को जानने से यह लाभ है कि आत्मा में भाव रूप केवलज्ञान में सम्पूर्ण लोक प्रतिबिम्बित होता है। इसलिए जिसने अपने को जान लिया, उसे जानने के लिए कुछ नहीं बचता है। वंदहु वंदहु जिणु भणइ को वंदउ हलि एत्थु। णियदेहह णिवसंतयह जइ जाणिउ परमत्थु ॥42॥ शब्दार्थ-वंदहु वंदहु-वन्दन करो, वन्दन करो; जिणु-जिन (देव); भणइ-कहते हैं; को वंदउ-कौन वन्दन करे; हलि-अरे!; एत्थु-यहाँ णियदेहहं-निज देह में; णिवसंतयहं-निवास करते हुए, जइ-यदि; जाणिउ-जान लिया; परमत्थु-परमार्थ। अर्थ-जिनदेव कहते हैं कि वन्दन करो! वन्दन करो! अरे! जिसने अपनी देह में वसने वाले (भगवान् आत्मा) को परमार्थ से जान लिया, तो फिर यहाँ कौन किसकी वन्दना करे? भावार्थ-आत्म-सुधा-रस में मग्न रहने वाले यतीश्वरों के तो यह विकल्प ही उत्पन्न नहीं होता कि मैं वन्दन करूँ? किन्तु जिमका मन अभी इन्द्रियों के विषयों में और क्रोध, मान, माया, लोभ कषायों में जाता है, उनके लिए जिनदेव उपदेश देते हुए कहते हैं कि वीतराग देव, सद्गुरु और अनेकान्तमय जिनवाणी की प्रतिदिन वन्दना करनी चाहिए। वास्तविक वन्दन तो उस ज्ञान तथा निर्विकल्प समाधि को है जिसके प्रकाशित होने पर वन्द्य-वन्दक भेद-भाव समाप्त हो जाता है। आत्मा परमात्मा या शुद्धात्मा को तभी तक वन्दन करती है, जब तक उन दोनों में भेद है। जहाँ अभेद है, वहाँ कौन किसको वन्दन करेगा? मुनिश्री योगीन्दुदेव का यह कथन 1. अ यत्यु; व एत्यु; क, द इत्यु; स अत्यु; 2. अणियदेहाहिं; क, द णियदेहाहं; ब, स णियदेहहं; 3. अ, क, द वसंतयह; ब, स णिवसंतयहं। 66 : पाहुडदोहा
SR No.090321
Book TitlePahud Doha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages264
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy