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________________ अर्थ-हे जीव! देह का बुढ़ापा-मरण देखकर भय मत कर। जो अजर, अमर, परम ब्रह्म है, उसे ही अपना (स्वरूप) मान। भावार्थ-यहाँ पर आत्माराम को सम्बोधित करते हुए श्रीगुरु समझाते हैं कि जन्म-मरण और बुढ़ापा शरीर की विभिन्न अवस्थाएँ हैं। आत्मा का न तो जन्म होता है और न मरण आदि। शरीर की बुढ़ापा, मरण आदि अवस्थाओं को देखकर डरना नहीं चाहिए। यद्यपि व्यवहारनय की दृष्टि में जन्म-मरण जीव का कहा जाता है, लेकिन परमार्थ से जन्म-मरण देह का होता है; जीव का नहीं। इसलिए शरीर के मरण को देखकर ऐसा नहीं समझना चाहिए कि एक दिन हमारी मृत्यु होगी। यह दोहा ‘परमात्मप्रकाश' (1, 71) में प्रथम अधिकार में है। इसमें कहा गया है कि जो अजर, अमर, परमब्रह्म शुद्ध स्वभाव है, उसको ही आत्मा. जान। अतः देह के जन्म-मरण को देखकर भयभीत नहीं होना चाहिए। कहने का तात्पर्य यह है कि आत्मा के अखण्ड परमब्रह्म स्वभाव को अपना स्वरूप जानकर पाँचों इन्द्रियों के विषयों को और सभी विकल्पों को छोड़कर समाधि में स्थिर होकर निज शुद्धात्मा का ध्यान करना चाहिए। जब तक शरीर में ममता रूपी विकल्प है और उसकी (मोह, ममत्वकी) ही निरन्तर सम्हाल है, तब तक आत्म-ध्यान नहीं हो सकता। आत्मध्यान के बिना कोई भी धर्मध्यान नहीं हो सकता। इसलिए उसका ही उपाय करना चाहिए। देहह उन्मउ जरमरणु देहह' वण्ण विचित्त। देहहं रोया जाणि तुहं देहहं लिंगई मित्त ॥35॥ शब्दार्थ-देहह-देह, शरीर के उब्भउ-उभय, दोनों; जरमरणुजरा-मरण; देहह-देहके; वण्ण विचित्त-वर्ण विचित्र (रंगों की विचित्रिता); देहहं-देहके रोया-रोग; जाणि-जानो; तुहं-तुम; देहहं-देहके लिंगइं-चिन्हों (को); मित्त-हे मित्र! __ अर्थ-हे मित्र! बुढ़ापा और मरण ये दोनों शरीर के हैं। विचित्र रंग भी शरीर के ही हैं। रोग तथा स्त्री-पुरुषादि लिंग शरीर के ही जानना चाहिए। भावार्थ-व्यवहारनय किसी में किसी को मिलाकर कहता है। आज तक चीनी या शक्कर से कोई भी बोरी नहीं बनी। लेकिन 'शक्कर की बोरी खाली कर दो' ऐसा ही भाषा का प्रयोग करते हैं। न सड़क कहीं जाती हैं और न नल कहीं से आते हैं, किन्तु लोक-व्यवहार में सभी समझते हैं कि कहने वाला क्या कहना चाहता है। इसी प्रकार जीव के मौजूद रहने पर ही जन्म, यौवन, प्रौढ़ता, बुढ़ापा आदि 1. अ, ब, स देहहं; क, द देहहि 2. अ, ब, स देहह; क, द देहहि। 60 : पाहुडदोहा
SR No.090321
Book TitlePahud Doha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages264
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
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