SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 48
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उव्वडि चोप्पडि चिट्ठ करि देहि सुमिट्ठाहारु। सयल वि देह-णिरत्य गय जिम दुजण-उवयारु ॥19॥ शब्दार्थ-उव्वडि-उबटन; चोप्पडि-(तेल) चुपड़ना; चिट्ठ करि-सजा . कर, शृंगार कर; देहि-दो, देते रहो; सुमिट्ठाहारु-बहुत मधुर भोजन; सयल वि-सभी; देह-णिरत्थ शरीर (के लिए) निरर्थक; गय-गया (चला गया), जिम-जिस प्रकार; दुज्जण-उवयारु-दुर्जन का उपकार। ___अर्थ-उबटन, तेल-मर्दन कर एवं मीठा भोजन खिलाकर शरीर को चाहे जितना सजाया जाए, लेकिन दुर्जन के प्रति किए गए सभी उपकारों की भाँति शरीर ' ' के लिए किए गए समस्त कार्य निरर्थक हैं। भावार्थ-शरीर अपवित्र तथा अनित्य है। इसको चिकना तथा सुन्दर बनाए रखने के लिए चाहे जितनी तेल की मालिश करो, गोरा दिखने के लिए लेप लगाओ, उबटन करो एवं देह की पुष्टि के लिए बढ़िया से बढ़िया भोजन खिलाओ, लेकिन यह तुम्हारा उपकार मानने वाला नहीं है; एक-न-एक दिन तुमसे बिछुड़ जाएगा। यह दोहा ‘परमात्मप्रकाश' में किंचित परिवर्तन के साथ द्वितीय अधिकार में 148 संख्यक मिलता है। इसमें टीका में कहा गया है कि जैसे दुर्जन के लिए किए गए सभी उपकार व्यर्थ जाते हैं, इसलिए उपकार करने से कोई लाभ नहीं है, उसी तरह शरीर को सजाने, सँवारने आदि से पारमार्थिक लाभ नहीं है। अतः इसको परिपुष्ट करने के बजाय उचित मात्रा में भोजन-पानादि देकर स्थिर कर मोक्ष की प्राप्ति के लिए पवित्र शुद्धात्मस्वरूप की आराधना करनी चाहिए। वास्तव में शरीर भोग के लिए नहीं, योग-साधना के लिए है। इस निर्गुण शरीर से केवल ज्ञानादि गुणों का संयम, तप आदि का साधन होता है, इसलिए इनसे सारभूत गुणों की सिद्धि करनी चाहिए। अथिरेण थिरा मइलेण णिम्मला णिग्गुणेण गुणसारा। काएण जा विढप्पइ सा किरिया किण्ण' कायव्वा ॥20॥ शब्दार्थ-अथिरेण-अस्थिर, चंचलता द्वारा; थिरा-स्थिर; मइलेण-मलिन द्वारा; णिम्मला-निर्मल; णिग्गुणेण-निर्गुण के द्वारा; 1. अ, ब उव्वडि; क, द उव्वलि; स उव्वट्टि-'परमात्मप्रकाश' में 'उव्वलि' पाठ है। 2. अ, क, स देहि; द, व देह; 3. अ, क, स जह; द जिह; व जिम; 1. अ किणि; ब किण; क, द, स किण्ण। 46 : पाहुडदोहा
SR No.090321
Book TitlePahud Doha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages264
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy