SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 29
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पाहुडदोहा गुरु दिणयरु' गुरु हिमकिरणु गुरु दीवउ गुरु देउ। अप्पहं परहं परंपरहं जो दरिसावइ भेउ ॥1॥ शब्दार्थ-गुरु-आत्म-हित के उपदेशक, शिक्षक; दिणयरु (दिनकर) सर्यः हिमकिरण-चन्द्रमा; दीवउ-दीपक; अप्पहं-आपका, अपना; परहं-पर का, अन्य (चेतन से भिन्न) का; परंपरहं-परम्परा से, जो-जो, दरिसावइ-दर्शाता है; भेउ-भेद।। ___ अर्थ-जो परम्परा से आत्मा (निज शुद्धात्मा) और पर (पराया) का भेद दर्शाते हैं-ऐसे गुरु सूर्य (दिनकर) हैं, गुरु चन्द्रमा (हिमकिरण) हैं, गुरु दीपक हैं और गुरु देव हैं। भावार्थ-गुरु की महिमा स्पष्ट है। यथार्थ में गुरु दिनकर के समान हैं। जिस तरह सूर्य लोक को प्रकाश से भर देता है, वैसे ही गुरु भी अज्ञान-अन्धकार को दूरकर ज्ञान से आलोकित कर देते हैं। जिस प्रकार चन्द्रमा शीतल किरणें चारों ओर फैला देता है, उसी प्रकार गुरु भी सुख-शान्ति की छटा बिखेर देते हैं, इसलिए वे चन्द्रमा के समान हैं। गुरु को दीपक इसलिए कहा है कि वह अपने घर के भीतर भण्डार में स्थित छिपे हुए रत्नों को प्रकाशित करता है; गुरु भी शक्ति रूप से अन्तर्हित (छिपे हुए) सम्यक्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र के प्रकाशन में निमित्त तथा सच्चे सुख का मार्ग दिखाने वाले हैं। वास्तव में गुरु वही है जो अज्ञान-तिमिरान्ध को दूर कर प्रकाश देने वाले हैं। इस दृष्टि से सबसे महान् गुरु सिद्ध भगवान् हैं, जो कभी इस संसार में लौटकर नहीं आते एवं जो सम्पूर्ण ज्ञान या केवलज्ञान से सम्पन्न होने के कारण तीन लोक के गुरु हैं। गुरु का अर्थ है-भारी, वजनदार। गुरु की यह विशेषता है कि भारी होने पर भी वे संसार-समुद्र में नहीं गिरते हैं। योगीन्दुदेव ‘परमात्मप्रकाश' में कहते है ते पुणु वंदउं सिद्धगण जे णिव्वाणि वसंति। __पाणिं तिहयणि गरुया वि भवसायरि ण पडंति ॥1, 4 ___ अर्थात्-मैं उन सिद्धों की वन्दना करता हूँ जो पूर्ण वीतराग स्वभाव में शाश्वत रहते हैं। तीनों लोकों में वे ज्ञान से गुरु होने पर भी भव-सागर में नहीं गिरते हैं। यही उनका माहात्म्य है। गुरु अपरिग्रही, जितेन्द्रिय, महाव्रती तथा जिनमुद्रा से 1. अ, द, ब, स दिणयरु; क दिणियरु। पाहुडदोहा : 27
SR No.090321
Book TitlePahud Doha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages264
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy