________________
जो वो एकै जाणियां, तो जाण्यां सब जाण। जो वो एक न जाणियां, तो सब ही जाण अजाण॥-कबीर ग्रन्थावली, निःकर्मापतिव्रता को अंग, 18
इस प्रकार स्पष्ट है कि हिन्दी के कवियों में विशेषकर कबीरदास की विचार-धारा, मान्यताओं, चिन्तन-पद्धति और भाषा-शैली आदि पर अपभ्रंश के कवियों का प्रभाव भलीभाँति परिलक्षित होता है।
पाठ-सम्पादन
‘पाहुडदोहा' का प्रस्तुत संस्करण पाँच हस्तलिखित प्रतियों तथा एक मुद्रित ग्रन्थ के आधार पर तैयार किया गया है। हस्तलिखित प्रतियों का परिचय निम्न-लिखित है।
अ-यह प्रति अंजनगाँव (अमरावती) के श्री दि. जैन मन्दिर के शास्त्र-भण्डार की है। इसकी पत्र सं. 28 (दोनों तरफ मिलाकर); आकार 18 x 14;" पंक्तियाँ प्रति पृष्ठ 12; वर्ण प्रति पंक्ति लगभग 24; हांसिया ऊपर-नीचे 1/2", दायें-बायें 1.3/4" है। यह प्रति सुरक्षित एक गुटके में है। लेखन सुन्दर तथा स्पष्ट है। कागज मटमैला, पतला है, प्रति जीर्ण-शीर्ण नहीं है। किन्तु कोई-कोई पत्र परस्पर चिपक गये हैं। लगभग तीन सौ वर्ष प्राचीन प्रति अनुमानित है। प्रति के प्रारम्भ में कुछ नहीं लिखा है। अन्त में संस्कृत के दो श्लोक लिखे हुए मिलते हैं, जिनको मिलाकर 222 पद्य हैं। अन्त में लिखा है-इति द्वितीय प्रसिद्धनाम योगींद्रविरचितं दोहापाहुडसमाप्तः।
ब-यह प्रति ब्यावर के दि. जैन ऐ.प. सरस्वती भवन की है। इसकी क्र. सं. 9278 है। इसकी पाना सं. 11 तथा कुल पत्र-संख्या 22 है। इसका आकार 9.1/2 "6" है। इसके प्रत्येक पृष्ठ में 13 पंक्तियाँ हैं और प्रत्येक पंक्ति में लगभग 36 वर्ण हैं। ऊपर-नीचे, दायें-बायें लगभग आधा-आधा इंच का स्थान छूटा हुआ है। प्रति का कागज सामान्य है, किन्तु लिखावट से प्राचीन प्रतीत होती है। प्रारम्भ में लिखा है-“अथ दोहापाहुड” । प्रति के अन्त में दो संस्कृत के श्लोक हैं, जिनको मिला कर कुल 222 पद्य हैं। सबके अन्त में कुछ भी उल्लेख नहीं है।
स-यह प्रति श्री दि. जैन बड़ा मन्दिर, शिवपुरी के शास्त्र-भण्डार की है जो गुटके में सुरक्षित है। इस गुटके में अपभ्रंश की कई छोटी-छोटी रचनाएँ हैं। कुछ हिन्दी की भी रचनाएँ है। इस गुटके के कुछ प्रारम्भिक पत्र नहीं हैं, किन्तु 'पाहुडदोहा' सुरक्षित है। इसका आकार 20 x 18 है तथा पत्र सं. 10 है। इसके प्रत्येक पृष्ठ में लगभग 12 पंक्तियाँ हैं। प्रत्येक पंक्ति में लगभग 15 वर्ण हैं। ऊपर-नीचे, दायें-बायें लगभग 1-1 इंच का स्थान छूटा हुआ है। प्रति अधिक प्राचीन प्रतीत नहीं होती; किन्तु शुद्धता की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है। ... इनके अतिरिक्त डॉ. हीरालाल जैन ने जिन दो प्राचीन प्रतियों (क और द)
प्रस्तावना : 25