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विषम चरण की 13 मात्राओं का स्वरूप :6+4+3 (= अथवा)
नियम से अन्तिम तीन मात्राओं के पूर्व एक गुरु होता है। सम चरण की 11 मात्राओं का स्वरूपः___6+4+1 (=) नियम से अन्तिम लघु के पूर्व एक गुरु होता है। उदाहरण है- ..
गुरु दिणयरु गुरु हिमकिरणु गुरु दीवउ गुरु देउ।
अप्पापरहं परंपरहं जो दरिसावइ भेउ ॥1॥ दोहा अर्द्धसम मात्रिक छन्द कहा गया है। इसमें प्रथम तथा तृतीय चरणों में. . 13-13 और द्वितीय तथा चतुर्थ चरणों में 11-11 मात्राएँ होती हैं। कुल मात्राओं की संख्या 48 होती है। मात्रिक गणों की दृष्टि से इसके चरणों की बनावट दो प्रकार की हो सकती हैविषम पाद-(1) 3+3+2+3+2 = 13 मात्राएँ
4+4+3+2 = 13 मात्राएँ सम पाद- (1) +3+2+3 = 11 मात्राएँ ___ (2) 4+4+3
= 11 मात्राएँ अथवा गण-रूप इस प्रकार भी हो सकते हैंविषम पाद-6+4+3
__ = 13 मात्राएँ सम पाद-6+4+1
-- = 11 मात्राएँ प्राकृत-अपभ्रंश के अधिकतर छन्द द्विपदी, चतुष्पदी और षट्पदी हैं। अपभ्रंश-काव्य में सर्वविषम छन्द नहीं के बराबर हैं। प्राकृत-अपभ्रंश के लक्षण ग्रन्थों में दो प्रकार के मात्रिक छन्दों का उल्लेख मिलता है-तालप्रधान एवं मात्राप्रधान। इस दृष्टि से अभी तक अपभ्रंश के छन्दों का अध्ययन नहीं किया गया है। वास्तव में हिन्दी में विकसित बहुविध चतुष्पदियों के विकास का मूल आधार अपभ्रंश की चतुष्पदियाँ हैं। ‘पाहुडदोहा' में दोहा सं. 123, 140-141, 145, 166, 167, 168, 169, 207 ये 9 छन्द निश्चित ही चतुष्पदियाँ हैं; शेष में दोहा छन्द है। प्रतीक-विधान
प्रस्तुत ग्रन्थ में अनेक प्रकार के प्रतीकों का प्रयोग लक्षित होता है। उदाहरण के लिए-कुडिल्ली, करहा, सिउ-सिव, सत्ति, ससि, रवि, बलद्द, णंदणवण, वेल्लि, गाम, हत्थिय, पालि, पिउ, घर, देवल आदि। इनमें से कुडिल्ली (कुटिया) 'शरीर' की,
1. प्राकृतपैंगलम् 1, 78 2. डॉ. शिवनन्दन प्रसाद : मात्रिक छन्दों का विकास, पृ. 145
22 : पाहुडदोहा